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________________ समवाय : २२॥ श्री तथा श्रीवत्स, श्रीदामगंड, माल्य, दृष्टि, चापोन्नत, अने आरणावतंसक ए छ विमाननां नामो आपेला छे (७) समवायाङ्ग ॥ सूत्र-२१॥ पत्र हवे बावीश स्थानक कहे छचो' अंग मू-बावीस परीसहा पन्नत्ता, तं जहा-दिगिंछापरीसहे १, पिवासापरीसहे २, सीतपरी॥८२॥ al सहे ३, उसिणपरीसह ४, दंसमसगपरीसह ५, अचेलपरीसहे ६, अरइपरीसहे ७, इत्थीपरीसहे ८, चरिआपरीसह ९, निसीहिआपरीसहे १०, सिज्जापरीसहे ११, अकोसपरीसहे १२, वहपरीसहे १३, जायणापरीसहे १४, अलाभपरीसहे १५, रोगपरीसहे १६, तणफासपरीसहे १७, जल्लपरीसहे १८, सकारपुरकारपरीसहे १९, पण्णापरीसहे २०, अण्णाणपरीसहे २१, दंसणपरीसहे २२ ।१। दिट्ठिवायस्स णं बावीसं सुत्ताई छिन्नछेयणइयाई ससमयसुत्तपरिवाडीए । २। बावीसं सुत्ताइं अछिन्नछेयणइयाइं आजीवियसुत्तपरिवाडीए । ३ । बावीसं सुत्ताई तिकणइयाइं तेरासियसुत्तपरिवाडीए । ४। बावीसं सुत्ताइं चउक्कणइयाई ससमयसुत्तपरिवाडीए । ५। बावीसविहे पोग्गलपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा-कालवण्णपरिणामे १, नीलवण्णपरिणामे २, लोहियवण्णप ॥८२॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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