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| नारकीओनी वीश सागरोपमनी स्थिति कही छे (२ ) । केटलाक असुरकुमार देवोनी वीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (३)। सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी वीश पल्योपमनी स्थिति कही छे ( ४ )। प्राणत कल्पने विषे देवोनी उत्कृष्ट स्थिति वीश सागरोपमनी कही छे (५)। आरण कल्पने विष देवोनी जघन्य स्थिति वीश सागरोपमनी कही छे ( ६ )। जे देवो सात, विसात, सुविसात, सिद्धार्थ, उत्पल, भित्तिल, तिगिच्छ, दिशासौवस्तिक, प्रलंब, रुचिर, पुष्प, सुपुष्प, पुष्पावर्त, पुष्पप्रभ, पुष्पकांत, पुष्पवर्ण, पुष्पलेश्य, पुष्पध्वज, पुष्पशृंग, पुष्पसिद्ध अने पुष्पोत्तरावतंसक नामना विमानमां देवपणे उत्पन्न थया होय ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति वीश सागरोपमनी कही छे (७)॥
ते देवो वीश अर्धमासे ( पखवाडीये ) आन ले छे, प्राण ले छे एटले उच्छ्वास ले छे, निःश्वास ले छे (१)। ते देवोने वीश हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२)। एवा केटलाएक भवसिद्धिक जीवो छे के जेओ वीश भवने ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे अर्थात् सर्व दुःखनो अंत करशे (३)॥
टीकार्थः-हवे वीशमा स्थानने विषे काइक लखे छे. तेमां स्थितिनां सूत्रोनी पहेलां सात सूत्रो छे. तेमा समाधि एटले समाधान अर्थात् चित्तनी स्वस्थता एटले मोक्षमार्गमा रहेवू ते. आवा प्रकारनी समाधि जे न होय ते असमाधि का कहेवाय छे, तेना स्थानो एटले आश्रयना मेदो अथवा पर्यायो ते असमाधिस्थानो कहेवाय छे. तेमां'दव
जे जल्दी जल्दी चाले ते अनुकरण शब्द करवाथी दवदवचारी कहेवाय छे. 'चापि'च' अने' अपि' शब्द लख्या छे ते आगळ आगळना असमाधिस्थाननी अपेक्षाए समुच्चयना अर्थवाळा एटले अनेना अर्थवाळा छे. 'भवति' क्रियाप