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________________ समवाय cामाना १७४००० हजार होय छे.) तेमांना वेलंधर देवोना आवास पर्वतो लवणसमुद्रनी चारे दिशामा एक एक होवाथी कुल चार ___समवायाङ्ग छे. ते पर्वतोना नाम पूर्वादिना अनुक्रमे गोस्तूभ, दकभास, शंख अने दकसीमा छे, तेमना अधिपति देवो अनुक्रमे गोस्तूम, सूत्र ॥ शिव, शंख अने मनःशील नामना नागराज छे. तथा अनुवेलंधरना आवास पर्वतो लवणसमुद्रमां चारे विदिशामा एक एक चो अंग होवाथी कुल चार छे. ते अनुक्रमे कर्कोटक, विद्युत्प्रभ, कैलास अने अरुणप्रभ एवा नामवाळा छे. तथा कर्कोटक, कर्दम, कैलास अने अरुणप्रभ एवा नामवाळा तेमना अधिपति-नागराजाओ छे. आ सर्वे (आठे) आवास पर्वतो (जंबूद्वीपनी ॥ ६७॥ जगतीथी) ताळीश हजार योजन लवणसमुद्रमा जइए त्यां आवेला छे. तथा आ सर्वे ( आठे) पर्वतो चार सो ने त्रीश योजन अने एक कोश भूमिनी अंदर रहेला छे अने सत्तर सो ने एकवीश योजन ऊंचा छे ( १७ थी २४.) (४)। 'चारJd णाणं त्ति'-जंघाचारण अने विद्याचारण मुनिओने रुचकादिक द्वीपमा जq होय त्यारे सत्तर हजार योजनथी कांइक अधिक ऊंचे गति कर्या पछी तिरछी गति करवानी होय छे (६)। तिगिछि नामनो कूट एटले उत्पात पर्वत, के जे पर्वत उपर - आवीने पछी मनुष्यक्षेत्र तरफ जवाने माटे देवो गति करे छे. ते पर्वत अहींथी असंख्यातमा अरुणोदय नामना समुद्रमां दक्षिण दिशाए बेताळीश हजार योजन जइए त्यां छे (७)। तथा रुचकेंद्र नामनो उत्पात पर्वत ते ज अरुणोदय नामना समुद्रमा उत्तर दिशाए तेटलो ज दूर रहेलो छ (८)। 'आवीई मरणे त्ति'-'आ-समन्तात् ' एटले चोतरफथी वीचिना जेवी वीचि एटले आयुष्यना दळिया खरी दी जाय तेवी अवस्था में मरणमा होय ते आवीचि मरण कहेवाय छ, अथवा तो वीचि एटले विच्छेद, तेनो जे अभाव ते अवीचि, SN ॥६७॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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