________________
| तिर्यंच के बादर वायुकाय वैक्रियने करे छे, त्यारे ( ते वैक्रियना ) प्रारंभ करनार औदारिकर्नु प्रधानपणुं होवाथी ज्यांसुधी
ते वैक्रियपर्याप्तिवडे पर्याप्तपणाने न पामे (पर्याप्तो न थाय) त्यांसुधी औदारिक वैक्रियनी साथे मिश्र कहेवाय छे. एज प्रमाणे | आहारकनी साथे पण औदारिकनी मिश्रता जाणवी. तथा क्रियशरीरकायप्रयोग वैक्रियपर्याप्तिवाळाने एटले पर्याप्त थयेलाने होय छे. तथा वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग (वैक्रिय पर्याप्ति) जेनी पूरी न थइ होय एवा देवने अथवा नारकीने कार्मणनी साथे मिश्रता जाणवी, अथवा (ते मनुष्य अने तियंचने) लब्धिवैक्रियनो त्याग करती वखते औदारिकमां प्रवेश करवाने समये
औदारिकने ग्रहण करवा माटे (वैक्रियनी) प्रवृत्ति होवाथी वैक्रियना प्रधानपणाने लीधे औदारिकनी साथे पण (वैक्रियनी) मिश्रता थइ शके छ एम केटलाक आचार्यों कहे छे. तथा आहारकशरीरकायप्रयोग ते आहारक शरीरनी निष्पत्ति थाय ! त्यारे तेनुं ज प्रधानपणुं होवाथी थाय छे. तथा आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोग, आहारकनो त्याग करवापूर्वक अन्य(औदारिक )ने ग्रहण करवा माटे उद्यमवंत थयेलाने औदारिकनी साथे मिश्रता थाय छे. आनो भावार्थ ए छे के-ज्यारे आहारक शरीरवाळो थइने कार्य कर्या पछी फरीथी औदारिकने ग्रहण करे छे त्यारे आहारकनुं प्रधानपणुं होवाथी औदा. रिकमां प्रवेश करवानो व्यापार होवाथी ज्यां सुधी सर्वथा (संपूर्ण) आहारकनो त्याग न करे त्यां सुधी औदारिकनी साथे
मिश्रता होय छे. अहीं कोई शंका करे के-ते आहारक शरीर करनार जीवे पोतानुं ते औदारिक शरीर सर्वथा (बिलकुल) N|| मूक्युं नथी परंतु पूर्वे जेवू बनावेलुं हतुं तेवु रहेढुंज होय छे, तो ते औदारिक शरीरने ग्रहण करवानुंज क्या छ ? उत्तरहा तारूं कहेवू सत्य छे, तो पण औदारिक शरीरने पाछं ग्रहण करवाने माटे प्रवृत्त थाय छे तेथी ग्रहण करे छ ज (एम कही
-
-