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---श्री
समवाय
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मायाह मन्त्र चोधु अंग ॥५८॥
त्यामृषा मनप्रयोग, सत्य वचनप्रयोग, मृषा वचनप्रयोग, सत्यमृपा वचनप्रयोग, असत्यामृपा वचनप्रयोग, औदारिक शरीर कायप्रयोग, औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोग, वैक्रियशरीर कायप्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीर कायप्रयोग, आहारकशरीर कायप्रयोग, आहारकमिश्रशरीर कायप्रयोग, कार्मणशरीर कायप्रयोग (८)॥
आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी पंदर पल्योपमनी स्थिति कही छे (१)। पांचमी पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी पंदर सागरोपमनी स्थिति कही छे (२)। केटलाक असुरकुमार देवोनी पंदर पल्योपमनी स्थिति कहेली छे (३)। सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी पंदर पल्योपमनी स्थिति कही छे (४)। महाशुक्र कल्पने विपे केटलाक देवोनी पंदर सागरोपमनी स्थिति कही छे (५)। जे देवो नंद, सुनंद, नंदावर्त, नंदप्रभ, नंदाकांत, नंदवर्ण, नंदलेश्य, नंदध्वज, नंदशृंग, नंदसृष्ट, नंदकूट, नंदोत्तरावतंसक विमानने विपे देवपणे उत्पन्न थया होय छे ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति पंदर सागरोपमनी कही छे (६)। ... ते देवो पंदर अर्धमासे (पखवाडीए) आन ले छे, प्राण ले छे, एटले उच्छवास ले छे, निश्वास ले छे (१)। ते देवोने पंदर हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२)। एवा केटलाक भवसिद्धिक जीयो छे के जेओ पंदर भवने ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे, अर्थात सर्व दुःखनो अंत करशे (३)॥
टीकार्थ--आ पंदरमुं स्थान सुगम छे तो पण ते विपे काइक लखाय छे.--अहीं स्थितिना सूत्रोनी पहेलां सात सूत्रोछे. तेमां परम-मोटा एवा अधार्मिक, ते संक्लिष्ट परिणामवाळा होवाथी परमाधार्मिक कहेवाय छे, ते एक जातना असुर छ,
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रा
रक्ष