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मूलार्थः-चौद प्रकारना भूतग्राम (जीवना समूह ) कह्या छे, ते आ प्रमाणे-सूक्ष्म अपर्याप्ता, सूक्ष्म पर्याप्ता, वादर समवाय समवायाङ्ग
NI अपर्याप्ता, बादर पर्याप्ता, द्वींद्रिय अपर्याप्ता, द्वींद्रिय पर्याप्ता, त्रींद्रिय अपर्याप्ता, त्रींद्रिय पर्याप्ता, चतुरिंद्रिय अपर्याप्ता, ना १४॥ सूत्र॥ चतुरिंद्रिय पर्याप्ता, पंचेंद्रिय असंज्ञी अपर्याप्ता, पंचेंद्रिय असंज्ञी पर्याप्ता, पंचेंद्रिय संज्ञी अपर्याप्ता, पंचेंद्रिय संज्ञी पर्याप्ता (१)। जोधु अंग
चौद पूर्व कह्या छे, ते आ प्रमाणे-उत्पाद पूर्व, अग्राणीय, त्रीजुं वीर्यप्रवाद पूर्व, अस्तिनास्तिप्रवाद, त्यार पछी ज्ञानप्रवाद,
सत्यप्रवाद पूर्व, त्यार पछी आत्मप्रवाद पूर्व, कर्मप्रवाद पूर्व, प्रत्याख्यानप्रवाद नवमुं छे, विद्यानुप्रवाद पूर्व, अवंध्यप्रवाद ॥५३॥ पूर्व, बारमुं प्राणायु पूर्व, त्यारपछी क्रियाविशाल पूर्व, तथा विंदुसार पूर्व (२) । अग्राणीय पूर्वने विषे चौद वस्तु (अध्ययन
जेवा विभागो) कहेल छे (३)। श्रमण भगवान महावीरस्वामीने उत्कृष्ट चौद हजार श्रमणसंपदा हती (४)। कर्मविशोधि | मार्गणाने आश्रीने चौद जीवस्थानो (गुणस्थानको) कह्या छे, ते आ प्रमाणे-मिथ्यादृष्टि, सास्वादन सम्यग्दृष्टि, सम्यगमिथ्या
दृष्टि, अविरत सम्यग्दृष्टि, विरताविरत (देशविरत), प्रमत्त संयत, अप्रमत्त संयत, निवृत्ति बादर, अनिवृत्ति वादर, सूक्ष्म| संपराय उपशामक अथवा क्षपक, उपशांत मोह, क्षीणमोह, सयोगीकेवळी अने अयोगीकेवळी (५)। भरत अने ऐरवत क्षेत्रनी जीवानो आयाम (लंबाइ) चौद चौद हजार चार सो ने एकोतेर योजन तथा एक योजनना ओगणीशीया छ भाग छे (६)। एक एक चातुरंत (चारे दिशाना अंत सुधी) चक्रवर्ती राजाना चौद रत्नो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-स्त्री रत्न, सेनापति रत्न, गाथापति रत्न, पुरोहित रत्न, वार्धकि (इजनेर) रत्न, अश्व रत्न, हस्ती रत्न, खड्ग रत्न, दंड रत्न, चक्र रत्न, छत्र रत्न, चर्म रत्न, मणि रत्न, काकिणी रत्न (७)। जबूद्वीप नामना द्वीपने विषे चौद मोटी नदीओ पूर्व-पश्चिम लवण- ND॥५३॥
उपशांत परत), प्रमाप्रमाणे