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दिकने विषे जे ठेकाणे घणा साधुओ एकठा मळे ते समवसरण कहेवाय छे. अहीं क्षेत्रने आश्रीने सर्व साधुओनो साधारण A अवग्रह होय छे अने वसति( उपाश्रय )ने आश्रीने साधारण अने असाधारण बन्ने प्रकारनो अवग्रह होय छे. आ कहेवाजावडे बीजा पण अवग्रहो उपलक्षणथी जाणी लेवा. ते अनेक प्रकारना छे, ते आ प्रमाणे-वर्षावग्रह, ऋतुबद्धावग्रह अने
वृद्धवासावग्रह, आ दरेकना साधारणावग्रह अने प्रत्येकावग्रह एम बब्बे भेद छे. तेमां जे क्षेत्र वर्पाकल्प विगेरेने माटे एकी साथे भिन्न गच्छवाळा वे विगेरे साधुओए अनुज्ञा लइने ग्रहण कर्यु होय, ते साधारण अवग्रह कहेवाय छे. परंतु जे क्षेत्रनो केटलाक ( एक समुदायना) साधुओए अनुज्ञा लइ आश्रय कर्यो होय, ते प्रत्येक अवग्रह कहेवाय छे. आ प्रमाणे होवाथी आ अवग्रहोने विषे आकुट्टीने लीधे ( हिंसाने लीधे ) अनाभाव्य (अकल्प्य ) एवा शिष्यरूप सचित्तने के वस्त्रादिक अचित्तने ग्रहण करनारा तथा अनाभोगवडे ग्रहण करेली वस्तुने पाछी नहीं आपनारा साधुओ समनोज्ञ अने अमनोज्ञ कहेवाय छे, तथा तेओ प्रायश्चित्तवाळा थाय छ अने छेवट असंभोग्य थाय छे. तथा पार्श्वस्थादिकने अवग्रह ज होतो नथी, तो पण जो ते क्षेत्र नानुं होय अने पोते संवेगी साधुओ अन्यत्र निर्वाह करी शके तेम होय तो ते क्षेत्रनो त्याग ज करे अने जो ते पार्श्वस्थादिकनुं क्षेत्र मोटुं होय अने संवेगी साधुओ अन्यत्र निर्वाह करी शके तेम न होय तो तेना क्षेत्रमा पण प्रवेश करे | अने सचित्त शिष्यादिकने ग्रहण करे, तेथी प्रायश्चित्तवाळा पण थता नथी. ते विषे कह्यु छ के-" अदत्त अने अकल्प्यने ग्रहण करवाथी समनोज्ञ अने अमनोज्ञ थाय छे. तेमां अमनोज्ञने संभोगथी जुदा करवा. तथा निर्वाहने अभावे पार्थस्थादि: कनी अनुज्ञा लइने रही शके छे. (१)" (१०) तथा सन्निसिज्जा य' संनिषद्या एटले आसनविशेष. ते संनिषद्या संभोग