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श्री समवायाङ्ग
सूत्र॥
॥३५॥
छे (३)। श्री अरिष्टनेमि अरिहंत भगवान ऊर्ध्व ऊंचाइमां दश धनुष हता (४) कृष्ण वासुदेव ऊर्ध्व ऊंचाइमां दश धनुष हताला चोथं (५)। राम बळदेव ऊर्ध्व ऊंचाइमां दश धनुष हता (६) दश नक्षत्रो ज्ञाननी वृद्धि करनार कह्या छे, ते आ प्रमाणे-"मृगशीर्प, अंग आर्द्रा, पुष्य, त्रण पूर्वा, मूळ, अश्लेषा, हस्त अने चित्रा आ दश नक्षत्रो ज्ञाननी वृद्धि करनारा छे १." (७) । अकर्मभूमिमा रहेला मनुष्योने उपभोगने माटे दश प्रकारना कल्पवृक्षो प्राप्त थयेला कह्या छे, ते आ प्रमाणे-“मत्तांगक, भंगांग, त्रुटितांग, दीपशिख, ज्योति, चित्रांग, चित्ररस, मण्यंग, गेहाकार अने अनग्न ॥१॥" (८)
आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विपे [ केटलाक] नारकीओनी जघन्य दश हजार वर्षनी स्थिति कही छे (१)। आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विपे केटलाक नारकीनी दश पल्योपमनी स्थिति कही छे (२)। चोथी पृथ्वीमा दश लाख नरकावासा कह्या छ (३)। चोथी पृथ्वीमा केटलाक] नारकीओनी उत्कृष्टथी दश सागरोपमनी स्थिति कही छे (४)। पांचमी पृथ्वीने विपे [ केटलाक ] नारकीओनी जघन्यथी दश सागरोपमनी स्थिति कही छे (५)। [केटलाक ] असुरकुमार देवोनी जघन्यथी दश हजार वर्पनी स्थिति कही छे (६)। असुरेंद्रने वर्जीने [ केटलाक] भवनपति देवोनी जघन्यथी दश हजार वर्षनी स्थिति कही छे (७)। केटलाक असुरकुमार देवोनी दश पल्योपमनी स्थिति कही छे (८)। बादर (प्रत्येक). वनस्पतिकायनी उत्कृष्ट स्थिति दश हजार वर्षनी कही छे (९)। [ केटलाक ] वाणव्यंतर देवोनी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षनी कही छे (१०) । सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी दश पल्योपमनी स्थिति कही छे (११)। ब्रह्मलोक कल्पमां देवोनी उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपनी कही छे (१२) । लांतक कल्पमां [ केटलाक ] देवोनी जघन्य
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