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________________ होय ते बहुसम कहेवाय छे, तेथी करीने ज रमणीय-मनोहर एवा भूमिभागथकी एटले पर्वतनी अपेक्षाए नहीं, तेम ज नरकनी अपेक्षाए पण नहीं, परंतु आठ रुचकनी अपेक्षाए (आ भूमिभाग) जाणवो ए तात्पर्यार्थ छे. (आवा भूमिभाग थकी नव सो योजन ऊंचे) 'आवाहाए' एटले वच्चे करीने 'उवरिल्ले एटले उपर रहेला 'तारारूप' एटले तारानी जाति 'चार' एटले भ्रमणने करे छे (३) ॥ अर्थात् आ संमभूतळा पृथ्वीथी ९०० योजन सुधीमां-तेनी अंदर ज्योतिष्चक्र भ्रमण करे छे. 'नवजोयणिया' एटले नव योजन लांबा ज मत्स्यो जंबूद्वीपमा प्रवेश करे छे. जो के लवणसमुद्रमां पांच सो योजन लांबा मत्स्यो संभवे छे, तो पण नदीओना मुखने विषे जगतीना रंध्र(बांका)नी योग्यता प्रमाणे आवा (नव योजनना) ज प्रवेश करी शके छ एम जाणवू. अथवा लोकस्वभाव ज आवो छे, एम जाणवू (१)। जंबूद्वीपमा पूर्व दिशाए रहेला विजयद्वारनी एक एक बाहाए एटले पडखे भौम एटले भूमिमां रहेला नगरो अथवा अन्यना मते विशिष्ट स्थानो रहेला छे (२)। तथा व्यंतरोनी सुधर्मा सभा नव योजन ऊर्ध्वपणे ऊंची छे (३)॥ तथा पक्ष्म विगेरे बार, सूर्य विगेरे पण चार अने रुचिर विगेरे अग्यार विमानना नामो छ (६)॥ सूत्र ९ ॥ हवे दश स्थानक कहे छे. मू०-दसविहे समणधम्मे पन्नत्ते, तं जहा-खंती १ मुत्ती २ अज्जवे ३ मद्दवे ४ लाघवे ५सच्चे ६ संजमे ७ तवे ८ चियाए ९ बंभचेरवासे १०।१। दस चित्तसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा-धम्मचिंता वा से असमुप्पण्णपुवा समुप्पजिजा सवं धम्मं जाणित्तए १, सुमिणदंसणे वा से असमुप्पण्णपुवे -
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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