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श्रीने ज ) पोतानो लाभ पामी शके छे, तेम संघ पण माताने नहीं मूकतो सतो ज संघपणाने पामे छे, अन्यथा पामतो नथी, तेथी ईर्यासमिति विगेरे प्रवचन माताओ कहेवाय छे. (२) । तथा व्यंतर देवोना चैत्यवृक्षो तेमना नगरोमां सुधर्मादिक सभानी पासे रहेली मणिपीठिकानी उपर सर्व रत्नमय तथा छत्र, चामर अने ध्वजादिकथी अलंकृत ( सुशोभित ) होय छे. वृक्षो वे श्लोकोडे आ प्रमाणे जाणवा - " पिशाचोना चैत्यवृक्ष कलंब नामना छे, यक्षोना वट नामना छे, भूतोना तुलसी नाना छे, राक्षसोना कंडक नामना छे, किन्नरोना अशोक नामना छे, किंपुरुषना चंपक नामना छे, भुजंगोना नाग नामे छे अने धना चैत्यवृक्ष व नामना छे." (३) । जंबू एटले उत्तरकुरुमां पृथ्वीना परिणामवाळो जंबूवृक्ष छे तेनुं नाम सुदर्शना छे (तेनी उपर सुस्थितदेवनो आवास छे) (४) । एज प्रमाणे कूटशाल्मली पण वृक्षविशेष छे, ते देवकुरुने विषे रहेलो छे, तेनी उपर गरुडी जातिवाळा वेणुदेव नामना देवनो आवास छे (५) । जगती एटले जंबूद्वी परूपी नगरना किल्ला जेवी फरती पाळ बांधी होय ते (६) । तथा पुरुपोना मध्यमां आदेय नामकर्मवाळा (सर्व पुरुषोने मानवा लायक) देवीशमा तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथ अर्हतने आठ गणो एटले सरखी वाचना अने क्रियावाळा साधुसमुदाय हता, अने आठ गणधरो एटले तेमना नायक सूरिओ हता. तेमनुं आ आठ संख्यानुं प्रमाण स्थानांग सूत्रमां अने पर्युषणाकल्पमां संभळाय छे; परंतु आवश्यकसूत्रमां अन्यथा संभळाय छे, तेमां कहुं छे के — " दस नवगं गणाण साणं जिणिदाणं " अर्थात् “पार्श्वनाथने दश गणो अने दश गणधरो हता. ' ( महावीरस्वामीने नव गण ने अग्यार गणधरो जाणवा. ) आ प्रमाणे कां छे ते अहीं ( आ सूत्रमां ) वे गणधरोनुं अल्प आयुष्य हशे इत्यादिक कारणने लीधे बेनी विवक्षा करी नथी एम जाणवु, अहीं मूळ सूत्रमां ' सुभे ' इत्यादि श्लोक कही
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