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पमनी कही छे (३)। केटलाक असुरकुमार देवोनी सात पल्योपमनी स्थिति कही छे (४)। सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी सात पल्योपमनी स्थिति कही छे (५)। सनत्कुमार कल्पमां देवोनी उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपमनी कही छे (६)। माहेंद्र कल्पमां देवोनी उत्कृष्ट स्थिति सातिरेक सात सागरोपमनी कही छे (७) । ब्रह्मलोक कल्पमां देवोनी साधिक सात पल्योपमनी जघन्य स्थिति कही छे (८)। जे देवो सम, समप्रभ, महाप्रभ, प्रभास, भासुर, विमला, कंचनकूट अने सनत्कुमारावतंसक नामना विमानमा देवपणे उत्पन्न थाय छे ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपमनी कही छे (९)॥
ते देवो सात अर्धमासे (सात पखवाडीयाने अंते) आन ले छे, प्राण ले छे एटले उचास ले छे, निःश्वास ले छे (१)। ते देवोने सात हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२)। एवा केटलाक भवसिद्धिक (भव्य) जीवो छ के जेओ सात भवने ग्रहण करवा वडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, यावत् सर्व दुःखनो अंत करशे. (३) ।
टीकार्थः-आ सूत्र पण सुगम छे. विशेष ए के-अहीं भय, समुद्घात, महावीरनुं शरीर, पर्वतो, क्षेत्रो अने क्षीणमोहनीयना अर्थवाळा छ सूत्रो छ, नक्षत्रना अर्थवाळा पांच सूत्रो छे, स्थितिना अर्थवाळा नव सूत्रो छे अने उच्छ्वासादिकना. अर्थवाळा त्रण ज सूत्रो छे, तेमां जे सजातीय जीवथी भय उत्पन्न थाय ते इहलोक भय कहेवाय छे, विजातीय जीवथी जे भय थाय ते परलोक भय कहेवाय छे, द्रव्यने आश्रीने जे भय थाय ते आदान भय कहेवाय छे, बाह्य निमित्त विना जे पोताना मनना संकल्पविकल्पवडे उत्पन्न थाय ते अकस्मात भय कहेवाय छे, बाकीना (आजीविका भय, मरण भय अने अश्लोक भय) प्रसिद्ध (सुगम) छे. विशेषमा ए के-अश्लोक एटले अपकीर्ति (१)। समुद्घातो पूर्वे कह्या प्रमाणे (६
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