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समवायाङ्ग
स्त्र॥
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जेणं सत्तहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्सति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ३॥ (सूत्रम्-७)॥ IN
INचो, मलार्थ:-भयना स्थानो सात कया छे, ते आ प्रमाणे- लोक संबंधी भय, परलोक संबंधी भय, आदान भय,
अंग ॥ अकस्मात् भय, आजीविका भय, मरण भय, अश्लोक (अकीर्ति) भय (१)। सात समुद्घात कया छे, ते आ प्रमाणेवेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणांतिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात, तैजस समुद्घात, आहार समुद्घात, केवळी समुद्घात (२)। श्रमण भगवान महावीरस्वामी सात रत्लि (हाथ ) ऊंचा हता (३)। आ जंबूद्वीप नामना द्वीपमा सात वर्षधर पर्वतो कह्या छे, ते आ प्रमाणे-क्षुल्लहिमवान, महाहिमवान, निषध, नीलवंत, रूपी, शिखरी अने मेरु (४)। आ जंबूद्वीप नामना द्वीपमा सात वर्षो (क्षेत्रो) कह्या छे, ते आ प्रमाणे--भरत, हैमवत, हरिवर्प, महाविदेह, रम्यक, ऐरण्यवत अने ऐवत (५)। जेनु मोहनीय कर्म क्षीण थयु छे एवा भगवान एक मोहनीय कर्मने वर्जीने बाकीनी सात कर्मप्रकृतिओने वेदे छे (६)॥
मघा नक्षत्रना सात तारा कह्या छे (१)। कृत्तिका विगेरे सात नक्षत्रो पूर्व दिशाना द्वारवाळा कह्या छे ( पाठांतरना मते अभिजित् विगेरे सात नक्षत्रो पूर्व द्वारवाळा कह्या छे) (२)। मघा विगेरे सात नक्षत्रो दक्षिण द्वारवाळा कया छे (३) । अनुराधा विगेरे सात नक्षत्रो पश्चिम द्वारवाळा कह्या छे (४)। धनिष्ठा विगेरे सात नक्षत्रो उत्तरद्वारवाळा कया छे (५)।
आ रत्नप्रभा नामनी पृथ्वीने विपे केटलाक नारकीओनी सात पल्योपमनी स्थिति कही छे (१)।त्रीजी पृथ्वीने विपे नारकीओनी उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपमनी कही छे (२)। चोथी पृथ्वीने विपे नारकीओनी जघन्य स्थिति सात सागरो- ॥२५॥