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प्रो० परशुराम कृष्ण गोडे।
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(सन् ७५७-७७२) की खुदवाये हुये ऐसे शिलाड़ित चित्र हैं, जिनमें शिव पार्वतीके जुआ खेलनेका दृश्य अङ्कित है। किन्तु उनका सम्बन्ध दिवालीसे स्पष्ट नहीं है।'
___ इस प्रकार अवतकके अध्ययनका सार पाठकोंके सम्मुख है । इससे स्पष्ट है कि यद्यपि जैन 'कल्पसूत्र में भ, महावीरके निर्वाणोत्सवोपलक्षमें लिच्छवि मलिक आदि राजाओं द्वारा दीपोत्सव मनानेका उल्लेख है; परंतु जैनेतर साहित्यमें दिवालीका प्राचीन नाम यक्षरात्रि मिलता है । कालक्रमानुसार उसका नाम बदलकर दिवाली हुआ निम्नप्रकार अनुमानित है।
यक्षरात्रि
सुखरात्रि
सुखसतिका ।
जस्खरत्ती (यक्षरात्रि)
__ = दीपाली
सन्, १०० से ४०० कामसूत्रके टीकाकार सन् ५९० से ८०० सन् १०८८- ११००-११५९ के के मध्य यक्षरात्रि। यशोधरके समयमें के मध्य सुखसुप्तिका) ११७२ देशी | मध्यसे 'दीपाली' (कामसूत्र) | सुखरात्रि। (नीलगत पुराण | नाममाला ' मैं | नाम हुआ ।
आदि) (हर्षने दीप- हेमचन्द्र (पुरुषोत्तमदेव) प्रतिपद्युत्सव लिखा है)
इतना होते हुयेमी हम अपने मूल प्रभोंको खुला छोड़ रहे हैं। इसका कारण यह है कि अभी अध्ययन करनेके लिये बहुत गुजाइश है। जैन-दिवालीका अध्ययन जैन ग्रन्योंमें करना शेष है। समय र पर दिवालीका रूप जैनोंमें क्या रहा, यह जानना आवश्यक है। पूर्ण अध्ययन के पवादही किसी निष्कर्षपर पहुचा जा सकता है अतएव विद्वानोंको इस विषयमें और अध्ययन करना उचित है । इति शम्,
१. जर्नल ऑव दीक्षा इंस्टीटयूट, मालाहाबाद, मा. ३ लंड १ प. २१४-११५.