SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रो० ધ I उल्लेख करता है कि इस दिन यमकी बहन यमुनाने अपने भाईको भोजन कराया था । चभीसे यह भाई-बहन का त्यौहार हो गया ! १० परशुराम कृष्ण गोडे । L १६. मेरुतुङ्ग ( १३०५ ई.) ने 'प्रबन्धचिन्तामणि ' में लिखा है कि गुजरात के शासक सिद्धराजके समकालीन कोल्हापूरके राजा ने दिवाळी उत्सव मनाया। उसमें यह विशेषतायें थीः ( १ ) कोव्हारपुकी कुलदेवी महालक्ष्मीकी पूजा राजाकी रानियोंने की, (२) सिद्धराज के एक राजकर्मचारीने महालक्ष्मी के स्वार्णभूषण-रत्न और कपूर दिवालीकी रातको चढाये और ( १ ) एक मंत्रयुक्त मी चढाया ॥१ १७. माधवाचार्य कृत 'कालनिर्णय' (१३५०) में त्रयोदशीको कुबेर पूजाका उल्लेख है । ( " त्रयोदशीं धन्याध्यक्षः कुबेरः पिते कलाम् । " ) १८. सन् १४२० या १४२१ ई. में इटलीसे निकोलोइ कोन्टि ( Nicoloi Conte ) नामक यात्री विजयनगर आया था । उसने दिवालीको मंदिरोंके भीतर और बाहर छतपर दीपक दिन रात जलते हुए देखे थे । + १९. ' आकाशमैरवकल्प ' ( सन्, १४५०-१६०० ई. ) में दिवालीका वर्णन है । राजाके लिये नरकचतुर्दशी और कार्तिक शुक्ल प्रतिपद् मनानेका विधान उसमें है। नरकचतुर्दशीकी विशेषतायें इसप्रकार लिखीं हैं: ( १ ) यह साम्राज्य दिवस है । अतः इसदिन राजाओंको विजय, सन्तान, सुख-वैभव प्राप्त होते हैं, (२) प्रातः स्नान, (३) पुरोहित व ब्राह्मणोंकी पूजा ( ४ ) स्नानसमय रानी राजाके तैल मर्दन करे और मल्ल गर्म पानीसे मङ्गलस्नान करावें; (५) राजा कुलदेवता की पूजा करके तीन दीपक जळावे; ( ६ ) तब राजा अस्थानकूढ ( दरबार ) को वस्त्र-शस्त्रसे सुसज्जत • होकर जावे और राजसिंहासनपर दरबारियों सहित बैठे। उनका मुजरा ले और उन्हें पुरस्कृत करे । ताम्बूल वितरण के साथ यह उत्सव समाप्त करे; (७) उपरान्त राजा अन्तःपुरमें जावे, तब रानियों व परिजनों सहित भोजन करें; ( ८ ) शामको अपने अधीन राजाओं सहित बाणविद्याका कौशल देखकर नाटय शालामै नाटक देखे, (९) तव अन्तः पुरमै जाकर भोजन करे और रात्रि पट्टमहिषीकी संगतिमें बिताये | दीपावली अर्थात् कार्तिक शुक्ल प्रतिपदके दिन पूर्ववत् ( १ ) स्नानादि करे, (२) - भास्कर (सूर्य) को पूजे; (३) लक्ष्मीनारायणको लक्ष्मीकी स्थिरता के लिये तीन दीपक चढावे, (३) पूर्ववत् राजदरवार लगावे, (४) अन्तःपुरमे साम्राज्य लक्ष्मीकी पूजा करे, (५) मध्यान्ह विश्राम के पश्चात् मल्लयुद्धादि देखे, (६) सारे नगर में दीपमालिका करावे; ( ७ ) राजकर्मचारियोंको ताम्बूल और बस्त्र उनके श्रमके उपलक्ष्मै भेंट करे, (८) समग्न दीपनिकल महालक्ष्मीको भेंट करे; ( ९ ) विरोचनके पुत्र और प्रल्हादके पौत्र वलीकी पूजा करे, (१०) ब्राह्मणादिको स्वर्णदान | २०. नृसिंह कृत 'काळनिर्णय दीपिका विवरण ' (१४०९) में धनद या श्रीद अर्थात् यक्षराज या कुबेरका सम्बन्ध प्रतिपदसे बताया है। १. नं. ८ से १६ तक के उल्लेखोंका विशद विवरण "Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute " Vol. XXVI के पू० २६१-२६२ पर पटना चाहिये ।
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy