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भ० महावीर स्मृति-अंध। (१) मगवान् बुद्ध और भगवान महावीर दोनोंके समकालीन मगध के राजा विम्बिसार और अजातशत्रु थे। मगध गगाके दक्षिण सम्पूर्ण दक्षिणी विहार पर विस्तृत या। उस समय उसकी राजधानी पाटलिपुत्र नहीं, अपितु राजगह थी। अजातशत्नु बडाही महत्त्वाकाशी, साम्राज्यवादी और गणतत्रोंका शत्रु था। उसने गंगाके उत्तरमें स्थित पन्जिसघ पर आक्रमण कर १० वर्षके युद्ध के बाद उसको परास्त किया । इस युद्धमें वञ्जिसंधकी ओरसे मलभी लहे थे। अतः राजगृइसे सटी पापाइरी का होना राजनैतिक दृष्टिसे बिल्कुल असभव था। मगध और काशी दोनों पर अजातशत्रुका शासन था। अतः गंगाके दक्षिणमें मल्लोका राज्य किसी प्रकारमी नहीं हो सकता था।
(२) महापरिनिवाण-सुत्तान्तसे तत्कालीन भूगोल और उस समयके मागोंकी दिशायें स्पष्ट मालूम होती है। राजगृह (दक्षिण विहार) से चल कर मार्ग गंगाको पाटलिपुत्र पर पार करता या
और इसके बाद वैशाली (मुजफ्फरपुर उत्तर बिहार) पहुँचता था। यहाँसे पश्चिमोत्तरमें चल कर भोगनगर और कुशीनगरके बीचमें उसी मार्ग पर पाबानगरी पडती थी। भगवान् बुद्ध वीमारीकी अक्त्यामेभी पावासे चल कर एक दिनमें कुशीनगर पहुँचे थे, अतः पावा शीनगरकं पास होनी चाहिये। राजगृह कुशीनगरसे लगभग १०० मील दूर है; इस लिये इसके पास पावा नहीं हो सकती । लिच्छवियों के बाद पावाके मोमही भगवान् महावीरका अधिक आदर था। अतः ६ नालन्दा छोड कर इसी मार्गसे पावामें अपना शरीर छोड़ने के लिये गये थे। अतः वास्तविक पावाका दक्षिण विहारमे नाटन्दाके पास खोजना व्यर्थ है । आजकलकी कल्पित पावापुरी नालन्दा-राजगृहके चीच बहगाँवमें है। संभव है भगवान महावीरकी चारिकासे वह स्थान कभी पवित्र हुआ हो, अथवा उनकी अतिम यात्रा यहाँसे प्रारम्भ हुई हो, और वास्तविक पावाके मुसलमानों द्वारा बस्त होने पर, पीछेसे उसको निर्वाणभूमिका महत्त्व मिल गया हो।
(३) वर्तमान पावापुरीमें प्राचीन नगर अथवा धर्मस्थानके कोई अवशेष नहीं मिलते हैं। वर्तमान मदिर आधुनिक है। यह बात इस स्थानकी प्राचीनतामे सन्देह उत्पन्न करती है। वर्तमान पापा उमवतः चौदहवीं शताब्दीमें स्थानान्तरित हुई। जैन जनताने प्रारम्भमें मुसलिम आतंक और पाळे अपने अशनके कारण वास्तविक पावाका परित्याग करके नवीन पावाकी कल्पना की। किन्तु भय और कल्पना वास्तविकताको ढक नहीं सकते । वास्तविक पाषा सठियाव-फाजिलनगरके खंडघरोंमें अवमी सोयी पड़ी है।