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________________ डॉ० राजवळी पाण्डेय। ४७ कोसग्विश्चापि साकेत सावथि च पुरुत्तम। । सोतव्य कपिलबत्युं कुसिनारश्च मंदिरं ॥ पायञ्च भोगनगरं वेसालिमागर्म पुरं। अपरके अवतरणसेमी सष्ट है कि वैशालीकी ओरसे पावानगरी भोगनगर और कुशीनगरके बीचमें पडती थी। इन सब बातों को ध्यान में रख कर जो सड़क कुशीनगरसे वैशालीकी ओर जाती है उसी पर पावानगरीको ढूँदना चाहिये । इसी रास्त पर कुशीनगरसे लगभग ९ मीलकी दूरी पर पूर्व-दक्षिण दिशामें सठियांव फाजिलनगरके अवशेष (डेढ मील विस्तृत) है । ये अवशेष भोगनगर (वर्तमान बदराँव) और कुशीनगरके बीच पडते हे | महापरिनिवाण-सुतान्तमें यहमी दिया हुआ है कि पावा और कुशीनगरके बीच दो नदियाँ पडती थी। ये नदियाँ शुन्या अथवा सोना और पाधी (प्राचीन ककुत्या) के रूपमें अबभी वर्तमान हैं । काायल नामक पुरातत्वविद्ने १८७५-७६ में गोरखपुर जिलेका पुरातात्विक निरीक्षण किया था। उसनेमी साहित्यिक वर्णन और भौगोलिक स्थितिके आधारपर इन्हीं सठियाँव-मानिलनगरके अवशेर्षों पर प्राचीन पावानगरीकी स्थिति निश्चित कीथी। अतः सभी स्थितियों पर विचार करते हुये पावानगरीकी स्थिति यहीं निश्चित जान पडती है। फाजिलनगर नाम नया है और यह नाम मुसलिम शासनके समय पडा था। यहाँ एक टीले पर एक मुसलमान साधुकी समाधि है। परन्तु इसके पासहीमें पुराने विहारों के भभावशेष और जैन मूर्तियोंके टुकडे पाये गये हैं जो इस बातकी ओर सकेत करते हैं कि इस स्थानका सम्बन्ध बौद्ध और जैन दोनों धर्मोसे था। और इससे लगा हुआ एक विस्तृत नगर था। दुर्भाग्यवश यहाँ खननकार्य अभी विल्कुल नहीं हुआ है। खोदाई होने पर इस स्थानका इतिहास और स्पष्ट हो जायेगा । कुछ विद्वानोंने पाबाकी स्थिति अन्यत्र निश्चित करनेकी चेष्टा की है। कनिंगहमने पायाको गर्वमान पडरौना (देवरिया जिलेमेंही) और महापण्डित राहुल सांकृतायनने पपउर (रामकोला स्टेशनके पास ) से मिलाने का प्रयास किया था । इस अभिन्नतामें थोडेसे शब्द साम्यके अतिरिक्त और कोई प्रमाण नहीं। ये दोनों स्यान कुशीनगरसे पश्चिमोत्तर कपिलवस्तु और वहाँसे श्रावस्ती जानेवाले मार्गपर स्थित है, जो वैशाली नानेवाले मार्गकी ठीक उलटी दिशामें हैं। अतः पडरौना और पपउर किसी तरहमी पावा नहीं हो सकते। काशीप्रसाद जायसवाल ने अपने हिन्दू पॉलिटी नामक प्रन्धर्मे, प्राचीन राज्योंकी स्थिति और भूगोल पर ध्यान न देते हुये, मल्लोंके राज्यको कुशीनगरसे पटना तक विस्तृत और वर्तमान पावाकोही अस्पष्ट रूपसे प्राचीन मोंकी राजधानी पावा मान लिया था। यह मत सर्वथा प्रान्त था । ग्रन्थके दूसरे संस्करणमें उन्होंने इस मतका परित्याग कर दिया। वर्तमान पालाको मल्लाकी राजधानी और भगवान् महावीरकी निर्वाणमि मानने में कई प्रबल आपत्तियाँ है:
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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