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________________ भ० महावीर-स्मृति-पंध। अपरके वर्णनोंसे नीचे लिखे निष्कर्ष निकलते हैं :-- (१) जिस पावासे भगवान महावीरका निर्वाण हुआ था वह मलोंकी राजधानी थी। (२) उपर्युक्त पावा शाक्य देशके निकट थी; दूसरे वर्णनसे यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है। (३) जिस तरह भगवान बुद्ध निर्वाणके पूर्व राजहसे चल कर कुशीनगर पहुंचे थे उसी तरह मगवान् महावीरमी नालन्दासे चल कर पावा आये थे। ऐसा जान पडता है कि मालराष्ट्रसे दोनों महापुरुषोंका घनिष्ठ लेह था; इसी लिये दोनोंने मल्र्लोकी राजधानियाँ कुशीनगर और पायाको अपने निर्वाणके लिये चुना। भत्र प्रश्न यह है कि मल्लोंकी राजधानी पावा कहाँ पर स्थित थी। यह निश्चित है कि बौद्ध साहित्यम जिन गणतनोंका वर्णन मिलता है उनमेंसे पावाके मल्लोंकाभी एक गणतत्र था। मलीकी दो मुख्य शाखायें थीं--(१) कुशीनगर (कुसीनारा) के मल्ल और (२) पावा (अपापा) के मल्ल । मस्लोंकी नव छोटी छोटी शाखाओंकाभी वर्णन मिलता है जिनको मालकि (लघुकाचक) कहते थे। इनके सभी वर्णनोंसे यही निष्कर्ष निकलता है कि मल्लॉकी सभी शाखायें निकटस्थ, पडोसी और एकही सधौ सपटिन थी। अतः मल्लोंकी दूसरी प्रमुख शाखाकी राजधानी पहली प्रमुख शाखाकी रामपानी कुशीनगर के पास होनी चाहिये। अब यह निर्विवाद रूपसे सिद्ध हो गया है कि कुशीनगर देवरिया जिलान्तर्गत (गोरखपुर जिलासे निकला हुआ एक नया जिला) कसया नामक कसबेके पास अनुरुषवाके दूहों पर स्थित था। वौद्धकालीन गणतन्त्र वडे बडे राज्य नहीं थे। गणराज्योंमें उनकी राजधानी और उसके पडोसका प्रदेश सम्मिलित होता था। ये यूनानके नगर-राष्ट्रॉसे संभवतः कुछ वडे थे। इस परिस्थितिमें पावा कुशीनगरसे बहुत दूर न हो कर उसके पासही कहीं स्थित होनी चाहिये। बौद्ध साहित्यमें पाबाकी स्थिति और दिशाके सम्बन्धमें निम्नलिखित उल्लेख मिलते हैं : (१) प्रसिद्ध बौद्ध अथ परिनिवाण-मुत्तान्तसे परिनिर्वाणके पूर्व भगवान् बुद्धकी राजराइसे कुशीनगर तककी यात्रा के मार्ग और चारिका (असण) का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसके अनुसार भगवान् बुद्ध राजगृहसे नालन्दा, नालन्दासे पाटलिपुन, पाटलिपुत्रसे कोटिग्राम, कोटिप्रामसे नादिका, नादिकासे वैशाली, वैशालीसे मण्डग्राम, मण्डग्रामसे हस्तिप्राम, हस्तिग्रामसे अम्वग्राम, अम्बशामले मम्बुग्राम, जम्बुप्रामसे मांगनगर, भोगनगरसे पावा और पारसे कुशीनगर गये। इस यात्राक्रममें पावा भोगनगर और कुशीनगरके दीचमें भावी है। एक बात और ध्यान देनेकी है। भगवान् बुद्ध रक्तातिसारसे पीड़ित होते हुयेमी पापासे कुशीनगर पैदल एक दिन में विश्राम करते हुये पहुँच गये थे। अतएव पावा कुशीनगरसे एक दिनको इलकी यात्राकी दूरी पर स्थित होनी चाहिये । (२) दुसरे बौद्धभन्म चुल्लनिइसके सिदिगयमुत्तममी एक यात्राका वर्णन आता है। इसके अनसार हेमक, मन्द, भय आदि जटिक साधु आहशसे चले थे और उनके मार्ग में क्रमशः निम्नलिखित नगर पडे:
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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