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प्राचीन हिंदी गद्यका अभाव : उसके कारण ।
(श्री. प्रेमनारायणजी टंडन, एम. ए. साहित्यरत्न, लखना) हिंदीमें साहित्य-रचना ईसाकी आठवीं शताब्दीमें होने लगी थी। परतु उस कालके पद्यझतियांकी ही प्रधानता रही, क्योंकि इस प्रकारको रचनाओं के प्रकारका उद्गम सस्कृत और प्राकृत का उन्नत साहित्य था । वस्तुतः गद्य और पद्यको प्रारभिक भाषामें अतर रहता है। गद्यकी भाषा बोलचालकी होती है, परतु पद्यकी कुछ न कुछ साहित्यिक रूप लिए हुए । अतः गद्यको भाषा पचकी अपेक्षा जनसाधारण की भाषाके अधिक निकट रहती है। यह इसलिए कि कवियाँको परपरागत साहित्यको शिक्षा मिलती है और स्वयं रचना करते समयभी वे अपनी भाषाको संस्कृत और परिमार्जित करनेको प्रयत्नमे लग जाते हैं ।
अतएव जिस प्रकार सस्कृत गद्यकी उत्पत्तिका काल निश्चित नहीं है, उसी प्रकार हिंदी गद्यम रचना किस समयसे आरम हुई, यह कहना हमारे आलोचकाके लिए कठिन रहा है। ३ हमारे साहित्यके आरभिक इतिहासकार चोदहवीं शताब्दीसे कुछ पूर्व गद्यका अविभाव मानते थे, यद्यपि उन्नीसवीं शताब्दीमें ही गयके दर्शन पहली बार करनेवालोंकी अब मी कमी नहीं है। वर्तमान इतिहास लेखकोंमें जो चौदहवीं शताब्दीसे नीचे उतरे हैं, उन्होंने बारहवीं शीमें प्राप्त पट्टे-परवानों को, जिनकी प्रामाणिकता सदिग्ध है, प्राचीन हिंदी गद्यके प्राप्त नमूने मान लिया है । इसके पूर्वकी गद्य रचनाओंका पता अभी तक हिंदी ससारको नहीं लगा है। इससे यह निष्कर्ष निकालना कि विक्रमकी वारहवीं शताब्दीके पहले गद्यमें ग्रन्थ लिखे ही नहीं गये, उचित
१'हिंदी पर प्राकृत भाषाओंका प्रभाव' शीर्षक लेख (ना. प्र. पत्रिकामें प्रकाशित; लेखकजगन्मोहन वर्मा)।
२. पृष्ट-२०१, संस्कृत साहित्यकी रूपरेखा'-द्रशेखर पांडेय और शातिकुमार नानूराय पास - १९४५॥
३. पृट-१९९, 'हिंदी भाषा और साहित्य -श्यामसुदरदास ।
, पृट-X'मिफेस'-'Our pross can be traced back to the 14th century and even earter,'-"मिश्रवधु विनोद, प्रथम भाग (प्रथम सस्करण)।
५. पृष्ट-. 'फुटनोट- Vernacular pross appears irst in the nineteenth century Classical Sansksit Literature' - A. Berciedale Keith, 1923.
६. पृष्ट-६२८, हिंदी भाषा और उसके साहित्यका विकास'~-अयोध्यासिंह उपाध्याय। ७. गोरखनाथके गद्यकी चर्चा हमें यहाँ नहीं करनी है-लेखक ।
म.स.१८