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म. महावीर स्मृति प्रथा
भारतीय जीवन पर जैन प्रभाव यम तन इंटिगोचर होता है। नवीन वैज्ञानिक प्रणाली पूजन, उसके लिए, मन्दिरोंका निर्माण, धर्मशालायें तथा गोशालाओंकी स्थापना, विशाल पुस्तकालयों का संचालन, निर्धनोंको अनादि वितरण, आदि जैनियोंकी मुख्य विशेषतायें हैं । जैनेटर अधिकायमै इन्हीका अनुकरण करते हैं । अहिंसा सिद्धान्तके प्रतिपादन में जैन व बौद्धधर्मही मुख्य हैं और बौदधर्मकी अपेक्षा जैनियोंनेही इस पर अधिक सूक्ष्मखासे आवरण किया है। जैन मुनि अनुकरणीय जीवन व्यत्तीय करते हैं । साक्षात् दयाकी प्रतिमा बने हुवे उन्होंने समस्त भारतमें विचरण किया और अपनी अहिंसासे, अजैन कृषक व राजाओंको समान रूपमें प्रभावित किया है | अहिंसा पर आचरण का सिद्धान्त प्राय. ठीक नहीं समझागा है। पूर्ण अहिंसा तो इत्यागी साधुके आचरणका विषय है। गृहस्थ के लिए उसकी योग्यता और पदके अनुसार सरल रूपमें, आचरण करनेका कयन है जैन राजामों व उनके सैनिकोंको अपने सम्मानब देशकी रक्षार्थ युद्ध करनेकी अनुशा है। दक्षिण भारतके कुछ राना महान योद्धा होते हुवेमी बसेही धार्मिक प्रवृत्तिके जैनमी हुवे हैं 1. समुदाय रूपमै जैनी पूर्ण शाकाहारी हैं और जहाँ २ वह अधिक संख्यामे हैं वहीं उन्होंने अपने पड़ोसियों परमी अपना प्रभाव झाला है। उनके सम्पूर्ण साहित्य तथा शिक्षाओंमें पशुषधका निषेध किया गया है । बत्त मान समपमें विभिन्न भागोंके जैनियोंने देवी देवताओं के सम्मुख पशुबलि रोकनेका प्रयत्न किया है
और वह इसमें सफलभी हुवे हैं ! जैनाचार्योंने मशुओंकी आतिश बना कर उनकी बलि देने वकका निषेध किया है क्योंकि यह पशुवधका सकल्प प्रगट करता है। जैन साहित्यमे पौराणिक कथाये, संक्षिप्त कहानियाँ, मुहावरे, तथा चारित्र सम्वधी-आदेश आदि सभी जीवमानके प्रति हिंसाका निषष करते हैं। अन्य भारतीय धर्मोमेमी अहिंसाका कथन है परन्तु जैन धर्म के समान नहीं। जैनधर्मका तो यह आधारभूत अंग है और उसमें इसका क्रमबद्ध वर्णन है ! जैनियोंको अन्य धर्मावलम्बियोन अनेक कष्ट दिये हैं और उन पर महान अत्याचारमी हुवे है। परन्तु यह इतिहाससे सिद्ध है कि शासन शक्ति होते हुएमी जैनियोंने जैनेतर समाज पर कमीमी अत्याचार नहीं किए।
महात्मा गाधी वर्तमान युगके सबसे महान अहिंसा के प्रतिपादक थे परन्तु उनके सिद्धांतों का आधार अन्य धोकी अपेक्षा जैनधर्ममही अधिक है। उनके कुछ सिद्धान्त जैनधर्मके शाओंमें नही पाये जाते इसका कारण यह है यह सिद्धान्त उन्होने समयानुसार ( कालानुसार) प्रतिपादित किए है
और वर्तमान वातावरण उन शालोंकी रचना कालके वातावरणसे मित्र है। जैनाचार्य सामाजिक कायोंमें अहिंसाकी शक्तिसे पूर्ण परिचित थे, परन्तु उनके विशुद्ध अध्यात्मिक दृष्टिकोणमें धार्मिक क्षेत्रके बाहर अहिंसा के सिद्धान्तोका प्रयोग करनेकी कोई आवश्यकताही नहीं थी। परिग्रह परिमाण, परके प्रति समभाव, आत्मशुद्धिके लिये उपवास, जन साधारणके सम्पर्क में धानेके लिये लम्बी लम्बी पैदछ यात्राएँ, हमें लेनाचार्यों तथा उनके जीवनक्रमका स्मरण कराती है। भारतके महान पुत्रके नाते महात्मा गाधीने सत्य व अहिंसाके सिद्धान्तोंको वर्तमान युगके लिए नवीन रूपमें प्रतिपादित किया है। यह दो सिद्धान्त नर नारियोंके वैयक्तिक तथा सामूहिक रूपमें, चारित्रिक मापदण्डके लिए संसार मरमें प्रयोगमें लाए जा सकते हैं।
सक्षेपमें जनधर्म और जैनियाँका यह वर्णन है। पाटकोंको इसके द्वारा उनके विषय में विधान जाननेकी प्रेरणा मिटेगी।