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________________ श्री० ए. एन. उपाध्याय २४३ में शिल्प तथा साहित्यकी जो महान रचनाएं हुई थे बड़ी ही महत्त्वपूर्ण है। इस कालमें वीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र, शाकटायन, महावीराचार्य, पुष्पदत, महिलसेन, सोमदेव, पम्प आदि महान विदान व कवि हुए कि जिनकी रचनाएँ विद्वत्ता तथा साहित्य क्षेत्रमें अद्वितीय हैं। यह सस्कृत, प्राकृत, अपनश, और कन्नड साहित्य और गणित, व्याकरण, तत्र आदि भिक्षाके विभागोंमें बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखती है। राष्टकट नरेश अमोघवर्ष (ई. स.,८१५-८७७) जिनसेनके मक और मालूम होता है कि उन्होंने अपने जीवन के अनमे जैनधर्मको स्वीकार किया था। वे खुद कनही और सस्कृतके प्रथकर्ता रहे है । विजयनगर साम्राज्यके नष्ट हो जाने परमी अग्रेजी राज्य होने तक दक्षिण में कुछ छोटे छोटे राजा जैनधर्म अनुयाई रहे हैं। गुजरातमें धनिक व्यापारी वर्गके भारणही जैनधर्मका प्रसार अधिक हुवा । परन्तु गुजरातके चालुक्य वंशी राजाओं विशेषतः सिद्धराज कुमारपालके समयमें ही जैन धर्मकी विशेष उन्नति हुई और उन्होंके समय जैनियोने गुजरात में अपनी महान साहित्यिक तथा शिल्पकला सम्बधी रचनाए की है । जैनियोकी इन रचनाकि कारण से गुजरातको आज भी एक महत्वका स्थान प्राप्त है। हेमचन्द्राचार्य आदि को गुजरातकी साहित्य सेवाका विशेष गौरव प्राप्त है । मुस्लिम शासकों के समयमें जैन मन्दिर नष्ट भ्रष्ट किए गए परन्तु किसी बही सख्यामें नहीं । जैनाचार्योंने मुस्लिमशासकों परभी अपना प्रभाव जमा लिया था ! अकबर ने जनाचार्य होर विजय को 'जगद्गुरु की उपाधी प्रदान की और पयूर्पण पर्वके समय जहाँ जहाँ जन रहवं हो यहाँ जीव-वध का निषेध कर दिया । देहली और अहमदाबादके कुछ धनिक व्यापारी क्याने अपनी विशाल धनराशि तथा व्यापारी सम्बंधोंके कारण मुगल दूरसारमें महत्वपूर्ण स्थान शात किया या और लगभग समी मुगलशासकोंसे उन्हें फरमान मिले । राजयुतानामे अनेक जैन मत्री या सेनापति हुए हैं जिनमें भामाशाह का नाम प्रसिद्ध है। अवमी वहाँ जैन बडी सख्यामे है। और एक महत्वपूर्ण स्थान रखते है । ईस्ट इंडिया कम्पनीके समय, मी जगतसेट, सिंधी आदि जन सेव हुए जो राजाके कोषाध्यक्षके नाते बड़े प्रभावशाली थे। _कला तथा भवन निर्माण सम्बधी रचनायें जैनियोंने सामाजिक एव धार्मिक आवश्यकताओं को घाटकाणमें रखते हुवे की है । जैन गुफाएँ तथा मन्दिर, मुनियों के निवास स्थान तथा पूजागृह उपासनाके लिये बनाये गये । धार्मिक दृष्टिकोणसे बनवाये हुवे अवशेषोंमें स्तूप, चरण-चिन्ह, मूर्तिमा, तया भानस्थम्म बादि हैं। कुछ गुफायें पूजाइभी रही हैं । उहीसा की हाथी गुम्फा गुफाएँ दूसरी ३. पू० की है । इसके उपरान्तकाल की गुफायें मदुरा, बदामी, तेर, एलोरा, झल्यानगढ, नासिक, मागी लगी, गिरनार, उदयगिरी, आदिमें हैं। मन्दिर निर्माणको जैनी लोग एक बडाही पुण्यका कार्य समझते हैं। यही कारण है कि जहाँ जैनी मिलेंगे वहाँ विशाल तथा सुन्दर मन्दिरमी अवश्य होंगे। इतिहास कालमें कुछ राबाऑने भूमि तथा ग्राम मन्दिरोंके लिए दान किए। इन जागीरोंकी देशरेसके लिए तथा जैनियोंकी धार्मिक, सामाजिक उन्नति के लिए भट्टारक हुवे। वे माधीश थे । यद्यपि अव यह प्रथा नष्ट हो रही है, तब भी इन भट्टारकों तथा मठीने भूतकालने बडाही लाभप्रट कार्य किया है । दक्षिण तथा उत्तर दोनों मायोंमें बडे वझे विशाल व सुन्दर जिनाल्योका निर्माण हुवा हैं।
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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