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________________ जैन धर्म और समाज। (ले० श्री० डॉ० ए. एन. उपाध्याय, एम. ए., डी, लिट्.) जैनधर्म प्रधानतः एक भारतीय धर्म रहा है और देशकी सीमासे बाहर इसका प्रसार नगण्य मात्र ही है । सन १९४१ ई० की जनगणना के अनुसार जैनियोंकी सख्या १,४४९,२८६ है, जो भारत की जनसंख्या की सेभी कम है। उनके दिगम्बर, श्वेताम्बर, तथा स्थानकवासी मुख्य व अन्य स्थानीय भेद हैं, फिरभी एक समुदायके रूपमें उनमें धार्मिक एकता है । तीर्थङ्करोंमहान धार्मिक गुरुओं जैसे ऋषभ, पाच. व महावीर मादिकी वे भक्तिपूर्वक उपासना करते हैं, उनका विशिष्ट तत्वज्ञान है, और वे विशेष नीति नियम और धार्मिक क्रियाओंका आचरण करते हैं। मारतकी प्राचीन सांस्कृतिक तथा बोद्धिक सम्पत्तिमें जैनियोंका एक माननीय माग्य रहा है। आजकल बह सामाजिक तथा आर्थिक दोनों दृष्टिकोणोंसे उच्च वर्गमैं ही आते हैं। उनके सामाजिक कार्य तथा दृष्टिकोण मानव समाजके लिए अत्यत हितकर है, यही कारण है कि उन्हें अपनी सल्यासे अपेक्षाकृत अधिक महत्त्व प्राप्त है । पूर्वकी अपेक्षा जैन पश्चिम तथा मध्य भारतमें ही अधिक पाये जाते हैं। वे प्रधानतः पापारी है, परन्तु दक्षिण तया मध्य भारतके कई भागोंमें जैनी पैत्रिक व्यवसायरूपमें कृषिमी करते है। जैनियों के विशाल मन्दिर, मार्तयों, तथा शिल्पकलाके उत्कृष्ट नमूने, उनके साधुसमुदायकी पठनपाउन तया तपश्चरण, सलमता, तथा उनका गृहस्थों पर प्रभाव कि जिसके कारण वह मानव समान के प्रति बढे दानशील रहते हैं, जीबमानके प्रति उनकी दयाकी भावना, तथा उनका पूर्ण सात्विक माहार आदि ही ऐसी बाते है जो एक विदेशी यात्रीका ध्यान विशेष रूपसे आकर्षित करती है। समस्त भारतमें फैले होने के कारण उनके व्यावहारिक रीति रिवाजों में भिन्नता पाई जाती है। अपने शान्त धार्मिक सिद्धांतों के कारण ही वह शान्तिपूर्ण व्यवसाय करते हैं। . जैनधर्म अत्यंत प्राचीन है । वर्तमान काल चतुर्दिशत तीर्थकरोंके तीर्थ-कालोंमें विभासित होता है। प्रथम तीर्थङ्कर धौऋषभदेवका कालं अत्यत प्राचीन है। हिन्दु पुराण भागवत में दिया हवा कपन जैन मान्यता से बिल्कुल मिलता है । बाइसवें तीर्थङ्कर श्रीनेमिनाथ श्रीकृष्ण के समय में हुई। यह इतिहास कालसे बहुत ही पूर्व पौराणिक कालके हैं | अन्तके दोनों तीर्थकर इतिहास कालके ही है । २३ वे तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ५ वी शताब्दी ई० पू० के हैं। वर्तमान इतिहास उनको स्वीकार करता है । उनके शिष्य केशी कुमार आदि भगवान महावीरके समय तक रहे। __२४ वें तीर्थंकर वर्षसान (महावीर) पाचनायसे कुछ शताब्दियों बाद हुवे । वह कुण्डमाम वैशाली (आजकल बसाढ, पटनासे. २७ मीलपर दूर) के निकट ५९९ ई० पू० मे जन्मे थे । उनके
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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