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प्राचीन पुरुषों के गुणोंको कौन कह सकता यहां ! सम्पूर्ण सागर नोर यो क्ट मध्य रह सकता कहां? है जगत अबभी ऋणी उनके विपुल उपकारका । उनने पढा था पाठ नित उपकारका उपकारका ॥
उस काल सर्व समाज जगके रूढि बन्धन मुक्त थे, करुणा तथा निष्पक्षतासे सर्वथा संयुक्त थे। निज बन्धुओंके प्रति उन्हें मनमें न किंचित द्वेष था, ऐसी समाजोंसे कमी पाता न कोई छेश था।
-जैन भारती।
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