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२०२ ० महावीर स्मृति-ग्रंथ । मान हैं। इस प्रकार जैनाचार्योने ज्योतिष विषयका क्षेत्र बहुत विस्तृत कर दिया है, जीवन के मालोच्य सभी लोकोपयोगी विषय इस शासके प्रतिपाद्य माने गये है।।
गणित विषयकी उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए महावीराचार्य ने अपने गणितसार समहमें बताया है कि
लौकिके वैदिके चापि तथा सामायिकेऽपि यः। व्यापारस्तत्र सर्वत्र संख्यानमुपन्यते ॥ कामतन्त्रेऽर्थ शास्त्रेच गान्धर्वे नाटकेऽपि वा। सूपशाव तथा वैद्ये वास्तुविद्यादि वस्तुपु । सूर्यादिनहचारेषु ग्रहणे ग्रहसंयुतौ। त्रिप्रश्ने चन्द्रवृत्तौ च सर्वत्राझी कृतं हि तत् ॥ बहुभिर्विप्रलापैः किं त्रैलोक्ये सचराचरे।
यत्किञ्चिद्वस्तु तत्सर्व गणितेन विना नहि । इससे स्पष्ट है कि गणितका व्यावहारिक रूप प्रायः समस्त भारतीय वाड्मयमें व्याप्त है। ऐसा कोईमी शास्त्र नहीं है जिसकी उपयोगिता गणितके बिना अभिव्यक्त हो सके। जैन अन्योंमें गणितके परिकर्म, व्यावहारगणित, राज्यगणित, राशिगणित, कलासवर्णगणित, जाव-वावगणित, वर्ग, धन, वर्ग:वर्ग और कल्प, इन दस मेदों द्वारा समस्त व्यावहारिक आवश्यकताओंकी पूर्तिके लिये जैनाचाोंने प्रयत्न किया है। जैन गणितमें नदीका विस्तार, पहाडकी ऊँचाई, त्रिकोण, चौकोन क्षेत्रोंक परिमाण इत्यादि अनेक व्यावहारिक बातोंका गणित विना नाप-तौलके रेखागणित और त्रिकोणमिति के सिद्धान्तों द्वारा बताया है। इस प्रकार समस्त जैन ज्योतिष व्यावहारिकतासे परिपूर्ण है।