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________________ श्री० नेमिचन्द्रजी जैन। २०१ . पन्नों का विश्लेषण करने के लिये भएकच प य श अकारोंका प्रथम वर्ग. आ ऐ य छ ठ ५ फ र ५ अक्षरौंका द्वितीय वर्ग, इ ओ ग ज ड द द ल स अक्षरोंका तृतीय वर्ग, ई औ घ झढ ध म व ह अक्षरोंका चतुर्थ वर्ग और उ क ड म ण न म अ आ का पचम वर्ग बताया है। इन अक्षरोंको एक स्लेट या कागज पर लिख कर प्रश्नकर्तासे स्पर्श कराना चाहिये, वह निस अक्षरका स्पर्श करे, उसी के अनुसार आलिंगित आदि सजाएँ शात कर फल कहना चाहिये। अथवा प्रश्नकर्ता आतेही जिस वाक्यका उच्चारण करे, उसी वाक्यके अनुसार अक्षरोंकी सशाएँ ज्ञात कर फल कहना चाहिये। ___प्रश्नों के प्रधानतः दो भेद बताये हैं - वाचिक और मानसिक । वाचिक प्रश्नों के उत्तर अक्षरॉकी उत्तरोत्तर, उत्तराघर, अधरोत्तर, अधराधर, वर्गोत्तर, अक्षरोत्तर, स्वरोत्तर, गुणोत्तर और आदेशोत्तरके द्वारा दिये गये हैं। और मानसिक प्रश्नोंक- शब्दोंका उच्चारण विना किये केवल प्रश्नोंको मनमें सोचनेसे, यानी कोई व्यक्ति अपने प्रश्नके सम्बन्धमें नहीं बताना चाहता है कि उसे कौनसी वात पूछनी है, ऐसे गुप्त रहस्य सम्बन्धी प्रश्नोंके उत्तर उससे किसीमी नदी, तालाव, देवता, फल, फूल आदिका नाम उच्चारण कराके उच्चारित अकारों परसे नीव, घाव और मूलभूत तीन प्रकारकी योनियोंकी संज्ञाओं द्वारा देने चाहिये । प्रश्न ग्रन्थों में अ आ इ ए ओ क इ क ख ग घ च छ न झ ट ठ ड य श ह ये इशीस वर्ण जीवाक्षर; उ अ अ त थ द ध प फ ब भ ष स ये तेरह वर्ण धावक्षर एव ई ऐ और सण न म ल र ष ये ग्यारह वर्ण मूलाक्षर सज्ञक कहे हैं। प्रश्नाक्षरोमै जीवाक्षरोंकी अधिकता होनेसे जीवसम्बन्धी प्रश्न धावक्षरोंकी अधिकता होनेसे धातु सम्बन्धी प्रश्न और भताक्षरोंकी अधिकता होनेसे भूल सम्बन्धी प्रश्न अवगत करना चाहिये। सूक्ष्मताके लिये जीवाक्षरोंके द्विपद, अपद, चतुष्पद् और पादसाल ये चार भेद बताये हैं। द्विपदादिकभी अनेक भेद-प्रभेद करके प्रश्नोंका विचार किया गया है। इस प्रकार जैन प्रश्न शास्त्रमे अनेक विशेषताएँ हैं। जैन सहिता ग्रन्थोंमेक्षे प्रधान भद्रबाहु सहिता, केवलशान होरा आदिमें अनेक व्यावहारिक विपयोंका सन्निवेश है। इन अन्योंमें पग-पग पर काम आनेवाली बातों पर प्रकाश डाला गया है। सामुद्रिक शास्त्र पर अनेक जैन स्वनाएँ सरल और सुबोध रूपमें मिलती हैं। इनमें स्त्री और पुरुषोंकी शकल-सूरतके आधारसे शुभाशुभ फलोंका निरूपण किया गया है। हाथ, मस्तिष्क और पैरकी रेखाओं परसेभी जीवनोपयोगी विषयोंकी मीमान्सा की गई है। निमित्तशास्त्रोंमें भौम, अन्तरिक्ष और दिव्य इन तीन प्रकारके निमित्तों द्वारा फलोंका निरूपण किया गया है। सहितासम्बन्धी रचनाएँ केवल ज्योतिष विषयकही नहीं कही जा सकती है, किन्तु इनमें आयुर्वेद, मन्त्रशास्त्र, रासायनिकशास्त्र आदि लोकोपयोगी अनेक विषयोंका समाह है। अकलक सहितामें आयुर्वेदके सुन्दर और अनुभूतनुस्खे विद्य १. देखें-केवलज्ञान प्रश्न चूडामणि । २. सशाओंकी परिभाषा जानने के लिये देखें केवलज्ञान प्रश्न चूडामणिका प्रारम्भिक भाग तथा चन्द्रोमीलन प्रश्न ।
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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