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भ० महावीर स्मृति-ग्रंथ।
पशाव, पटह, मम्मा (ढका), होरम्मा ( महालका ), भेरी, झालरी, दुन्दुमी, मुज, मृदंग, नन्दि मृदग (एक ओर सकरा एक ओर चौडा मुख्न), आलिग्यक (एक प्रकारका मुरुज), कुखुम्ब, गोमुखी, मर्दल (दोनो ओर बराबर मुहवाला), विपंची (तीन तारमी वीणा), वालकी, भ्रामरी, षड्भ्रामरी, परिवादिनी, महती, कच्छपी, चित्रवीणा, शशा, नकुल, तूणा, तुम्बबीणा, मुकुन्द (एक प्रकारका मुरुज), हुडुक्का, चिविक्की, करटी, सिंडिय, किणित, कडम्ब, दर्दरक, दर्दरिका, कलश, वाल, कास्यताल, रिंगीरिसिका, मकरिका, शिशुमारिका, वशी, बाली, परिली | इस सूचीमें जिन वा के नाम आए है उनमें से प्रत्येकका अपना एक इतिहास होना चाहिए। भारतीय संगीत और वाजों पर काम करनेवाले विद्वान्के लिए यह सामग्री अनमोल कही जा सकती है। भारतीय शिल्पकलामैं इनमें से अनेक बाजोंका चित्रण आया होगा उनकी पहचान और व्यौरेबार अध्ययन पूरे शोध निरधका विषय है । फ्रेंच भाषामें भार्शल-डुबुमाने अभी हाल्में प्राचीन भारतीय बाजो पर बहुतही सुन्दर साचित्र पुस्तक लिखी। उस प्रकार एक ग्रन्थ शीघही हमारी भाषामें प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
जैन विद्वानोंकी साहित्यिक रचनाओं के द्वारा औरभी कई प्रकारकी भारतीय संस्कृतिको सामग्रीकी रक्षा हुई है। जैन भण्डारोंमें बहुतसे अलभ्य अथ सुरक्षित रह गए हैं। पाटन और जेसलमेरके भण्डारोंकी जितनी प्रशसा की जाए कम है। पुरातन प्रबन्ध, विज्ञप्ति-पत्र, ऐतिहासिक-गीत, रास ग्रन्थ, इन सबमें इतिहास-शोधनकी सामग्री मिल सकती है। लेकिन दो दिशामें जैन-विद्याके लिए अभीमी अपरिमित क्षेत्र खुला है। इनमें से प्रयम तो भिन्न भिन्न विषयो पर जैन विद्वानों द्वारा लिखे हुये फुटकर ग्रंथ है। इसके अतर्गत गणित, ज्योतिष, वास्तु आदि विषयों के ग्रन्थ हैं। कभी कभी इस क्षेत्रमें विलक्षण सामग्री उपलब्ध हो जाती है। अभी हालमें अलादीन खिलजीके समकालीन उनकी टकसालके अध्यक्ष श्री. ठक्कुर फेरूके अन्योंका परिचय प्रकाशित हुवा है। उपकुर फेक प्रतिभाशाली लेखक थे । मध्यकालीन वास्तु-विद्या पर उनका वास्तु-शास्त्र नामक एक अन्य छप चुका है। लेकिन अभी हालमें पुराने सिक्कों पर लिखी हुई द्रव्य-परीक्षा नामक उनकी एक दूसरी पुस्तकका परिचय मिला है। इस पुस्तककी एक प्रतिलिपि श्री० मगरचन्द्रजी नाहटाकी कृपासे हमारे देखने में आई । इस पुस्तकमें लगभग आठसौ ईसवीसे लेकर तेरह सौ तकके भारतीय सिझोंक नाम, तोल और मूल्यका बहुतही प्रामाणिक वर्णन किया गया है। भारतीय मुद्राशास्त्रके इतिहासम इस प्रकारकी कोई पुस्तक कभी पहले देखने में नहीं आई । ठक्कुर फेल्की अपने देशवासियों के लिए यह अनुपम देन है और जिस दिन इस ग्रन्थका विस्तृत सचित्र सस्करण प्रकाशित होगा उस दिन हम इस महान लेखककी कृतिक महत्वको समझ पाएगे।
परन्तु इन सरसे बढ कर एक दूसरे क्षेत्रमें जैनविद्याका सर्वोपरि महत्व हमारे सामने आता है और वह है मापा-शास्त्रके क्षेत्रमें । भारतकी प्रायः सभी प्रान्तीय भाषाओंका विकास अपनशसे
9. LCS Instruments De Alusiquc De L'Inde Ancienne by Claudic MarcelDubois