SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री० वासुदेव शरण अग्रवाल १७१ दूम और चन्द्रोदमके अपरिमित सौन्दर्यको हमें जीवनकी भागदौडमें भूल न जाना चाहिए। बसीसी नाव्यविधिको जन्म देनेवाले नाट्याचार्योंके मन उसकी ओरसे अवश्य जागरूक थे। विशाल गगनागणमे सोनेके रथ पर बैठे हुए उपाकालीन सूर्य समस्त भुवनको आलोक और चैतन्यके नवीन मगलसे प्रतिदिन भर देते हैं, कितने पक्षी अपने कलरवसे उनका स्वागत करते हैं, कितने पुष्प उनके दर्शनके लिये अपने नेत्र उधाडते हैं, कितने चराचर जीव उनकी प्रेरणासे जीवनके सहस्रमुखी व्यापाराम प्रवृत्त हो उठते हैं- इसकी कल्पना सूर्योद्गमके नाट्याभिनयमें मूर्तिमती हो उठती थी। चन्द्रसूर्यके आकाशमें उगने, चढने, ढलने और छिपनेका पूरा कौतुक नृत्यमें उतारा जाता था। इन्हें क्रमशः उद्गमनमविभक्ति, आगमनपविभक्ति, आवरणप्रविभक्ति और अस्तमयनप्रविभक्ति नाटयविधि कहा गया है। तदनन्तर चन्द्रमंडल, सूर्यमंडल, नागमडल, यक्षमडल, भूतमडल प्रविभक्तिका अभिनय हुआ। ग्याहरवें स्थान पर ऋषभ ललित, सिंह ललित, हयविलम्बित, गजविलम्बित, इयविलसित, गजविलसित, मत्तइयविलसित, मत्तगजविलसित, मत्तयविलम्बित, मत्तगजविलम्बित आदि आकृतियोंसे सुशोमित द्रुतविलम्बित नामक नाटयविधिका. प्रदर्शन किया गया। पुनः सागर-नागर प्रविभक्ति, नदा-चम्पा प्रविभक्ति, मत्स्याडक-मकराडक प्रविभक्तिका अभिनय हुआ। इनमेसे अधिकाश नामोंका यथार्थ स्वरूप इस समय सष्ट नहीं होता परन्तु सम्भव है विशाल जैन साहित्यके किसी भागमें उनका वर्णन बचा रह गया हो। इसके बाद पाचों वर्गों के पच्चीस वर्णोका नृत्य, रूपचित्रण किया गया । इसे वर्गक्रमसे ककार-खकार गकार-धकार-डकार प्रविभक्ति आदि कहा गया है। तदनन्तर अशोकपल्लव, आम्रपल्लव, जम्बुपल्लव, कोशाम्बपल्लवकी आकृतियोंको नाटयमें दिखलाया गया। पुनः पद्मलता, नागलता, अशोकलता, चम्पकलता, आम्लता, वासन्तीलता, वनलता, कुन्दलता, अतिमुक्तकलता, श्यामलता इनके स्वरूपका चित्रण अभिनयके द्वारा किया गया जिस लतापविभक्ति नामक इक्कीसवीं नाट्यविधि कहा गया है । इसके अनतर द्रुत, विलम्बित, दुतविलम्बित, अचित आदिक दस प्रकारके गति-नृत्योंका प्रदर्शन किया गया । अन्तमें मुख्य विषय, अर्थात् महावीरकी जन्मसे निर्वाण पर्यन्तकी लीलाओंके अभिनयका प्रदर्शन किया गया। पुनः देवकुमार और देव. कुमारियोंने मिलकर बत्तीसिया नाटयविधिकी परिसमाप्सिकी सूचना देनेके लिये मगलात्मक चार प्रकार के बाओंको बजाया और चार प्रकारके गानका प्रदर्शन किया। इस प्रकार नृत्य गीत वादिन और अभिनयके मनोभिराम प्रदर्शनका वह आयोजन सम्पन्न हुआ। कुछ विस्तारके साथ उद्धृत किए हुए इस प्रकरणसे यह बात निश्चित रूपसे प्रकट हो जाती है कि जैनागम साहित्यमें और उसकी वी वडी टीकाऔमें भारतीय संस्कृतिके उद्घाटनके लिए कितनी बहुमूल्य सामग्री विद्यमान है। अभी तक व्यवस्थित रूपसे इस सामग्रीके अध्ययन, सकलन, विवरण और प्रकाशनकी परिपाटी विद्वानों में प्रवर्तित नहीं हुई, परन्तु यदि एक बार यह सिलसिला चल पडेगा तो हम देखेंगे कि जैनविद्या भारतीय संस्कृति और इतिहासके लिए कामधेनुकी तरह हमारी आशाओंको पूरा करेगी। रायपसेनिय ग्रन्थके इसी प्रकरणमें प्राचीन भारतीय बाजोंकी लम्बी सूची दी गयी है, जैसे शख, शखिका, भृग, खरमुखी, पेया, परिपिरिया ( मुहका वाना),
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy