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________________ श्री चैनसुखदासजी शास्त्री। १३९ चेतनासे इसका भय निकल जाये । जैनोंके प्रकाण्ड तार्किक श्री प्रमाचंद्राचार्यने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ प्रमेयकमलमार्तण्डमें जातिका खडन करते हुवे लिखा है कि :--- "किश्चेद ब्राह्मणत्व जीवस्य, शरीरस्य, उभयस्य वा स्यात्, सस्कारस्यवा, वेदाध्ययनस्य वा गत्यतरासमवात् । न तावज्जीवस्य, क्षत्रियविद् शूद्रादीनामपि ब्राह्मण्यस्य प्रसङ्गात् तेषामपि जीवस्य विद्यमानत्वात् । नापि शरीरस्य अस्य पञ्चमृतात्मकस्यापि घटादिवद् ब्राझण्यासभवात् । न खलु भूताना व्यस्ताना समस्ताना वा वन्समवति । व्यस्ताना तत्समवे क्षितिजल हुताशनाकाशानामापे प्रत्येक ब्राह्मण्य प्रसङ्गः । समस्ताना च तेषा तत्समवे पटादीनामपि तत्समवः स्यात् तव तेषा सामस्स्यसभवात् । नाप्युमयस्य, उभयदोषानुषनात् । नापि सस्कारस्य, अस्य शूद्र वालके कर्तुं शक्तितस्तत्रापि तत्प्रसङ्गात् । किञ्च सत्कारात्माग्नाक्षणवालस्य तदस्ति न वा यद्यस्तिः सत्कार करण वृथा । अथ नास्ति तथापि तद्वया । मबाह्मणस्याप्यतो ब्राह्मण्य समवे शूद्रबालकस्यापि तत्समवः केन वायेंत ? नापि वेदाध्ययनस्य, शूद्वेपि तत्सभवात् । शूद्रोपि हि कश्चिद्देशान्तर गवा बेद पठति पाव्यति का | नतावतास्य --- ब्राह्मणत्व भवडिरम्युपगम्यत इति । अर्थात् यह ब्राह्मणत्व जीवका है, शरीरका है अथवा जीव और शरीर दोनोंका है अथवा सस्कारका है अथवा वेदाध्ययनका है । इसके अतिरिक्त इस विषयमें और कोई विकल्प नहीं उठ सकते । इनमें से जीवका तो ब्राह्मणत्व हो नहीं सकता, नहीं तो भत्रिय, वैश्य और शूद्रोकेमी ब्राझणत्व का प्रसग हो जायगा, क्योंकि जीव तो उनकेभी विद्यमान है। शरीरकोभी ब्राह्मण नहीं माना जा सकता क्योकि घटादिककी तरह पञ्चभूतात्मक शरीरसे ब्राझण्य असमव है । यदि पञ्चभूतोंका ब्राह्मणत्व स्वीकार किया जाय तो पृथक् पृथक् पञ्चभूत ब्राह्मण होगे या मिलकर दोनोंही पक्ष युक्ति बाधित है। इसी तरह जीव और शरीर इन दोनोकामी ब्राह्मण्य स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि उमय दोषका प्रसग आ जायगा | संस्कारकामी ब्राह्मण्य स्वीकार नहीं किया जासकता क्योंकि सस्कार तो शूद्र बालक भी किया जा सकता है, तब उसेमी ब्राह्मण मानना पडेगा। और यहां यहभी पूछा जा सकता है कि सस्कारके पहले ब्राह्मणके बच्चेमें ब्राह्मणत्व है या नहीं? यदि है; तो सस्कार करना व्यर्थ है। यदि नहीं है तोभी व्यर्थ है, क्योंकि अब्राह्मण भी सरकारसे ब्राह्मणत्व स्वीकार कर लेने पर शूद्रके बालकभी ब्राह्मणत्व स्वीकार किया जा सकता है क्योंकि सस्कार तो उसकामी हो सकता है । इसी तरह वेदाध्ययनकोभी ब्राह्मणत्वका कारण नहीं माना जा सकता क्योंकि वेदाध्ययन तो शद्रभी हो सकता है । कोई शद्गमी देशातरमें जाकर वेदको पढ लेता है और दूसरोंको पढा देता है फिरभी उसका ब्राह्मणत्व नहीं माना जाता !
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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