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________________ प्रो० हेल्मुथ फॉन ग्लास्नाप! कि अहमदाबादमें जैनोंने मुसलमानको जैनी बनानेकी प्रसग वार्ता उनसे कही थी-जैनी उसे अपने धर्मकी विनय मानते थे। भारतकी सीमाके बाहरके प्रदेशोमेमी जैन उपदेशकोने धर्मप्रचारके प्रयत्न किये थे। चीनयात्री इथूयेन साँग (६२८-६४५ ई०) को दिगम्बर जैन साधु कियापिशी (कपिश) में मिले ये-उनका उल्लेख उसके यानाविचरणमें है। हरिमद्राचार्य ( ८ वीं श० ) के शिष्य हस-परमहसके विषयमें . ज्ञात है कि वे धर्मप्रचार के लिये तिव्वत (भोट) मे गये और वहा बौद्धोंके हाथोंसे मारे गये थे।६ इनवेडल (Gruinwedel) सा. ने कुच विषयकी हकीकतका जो अनुवाद किया है, उससे वहा जैनधर्म प्रचारकी पुष्टि होती है। महावीरके धर्मानुयायी उपदेशकोंमें इतनी प्रचार आतुरता यी कि वे समुद्र पारमी जा पहुचे थे। ऐसी बहुत-सी कथायें मिली है जिनसे विदित होता है कि जैन धर्मपिदेशोंने दूर-दूरके द्वीपोंके अधिवासियोंको जैनधर्ममें दीक्षित किया था। दिगम्बरोंकी मान्यता थी कि जयपुरसे १५०० कोस दूर, रामेश्वरके परली पार समुद्र में जैनबद्री नामका द्वीप है जो जैन विद्याका केंद्र या । मुहमद सा० से पहले जैन उपदेशक अरबस्तान में भी गये थे, इस प्रकारकीभी कथा है । प्राचीन कालमें जैन व्यापारीगण अपने धर्मको सागर पार ले गये थे, यह बात सभव है। अरत्र दार्शनिक तत्ववेत्ता अबु-ल-अला LADu-1.A1a.) [७९३-१०६८ ई० ] के सिद्धातोपर स्पष्टतः जैन प्रभाव दिखता है । वह केवल शाकाहार करता था-दूधतक नहीं लेता था । दूधको गायके । ४. Buhler, loc. cit p. 36 जैकोबीको पता था कि एक ईसाई पादरीने जैनधर्म धारण किया था। [सं. नोट-भारतके इडो-ग्रीक शासकोंमेंभी जैनधर्मका प्रचार हुआ था। 'मिलिन्दपण्ह' ग्रंपसे (१०८) स्पष्ट है कि यधनराज मिलिन्द (Menander ) पाच सौ यूनानियोंके साथ जैन मुनियों के पास धर्मचर्चा करने गया था। जिनमेंसे अधिकांश जैनी हो गये थे। (Historical Gleanings, P78) कुशन कालमें शक और पारथीय यवन ( Parthians ) भी जैन धर्ममुक्त हुये थे, यह बात मधुराके जैनमूर्ति-लेखोंसे प्रमाणित हैं। (Luders, D. R. Bhandarkara Volume (Calcutta) pp. 280-289) छत्रप राजाओंमें नहपान और कद्रसिंहकी भाति जैन धर्म के प्रति थी। (जैन सिद्धांत भास्कर, मा. ११ पृ० ४) हूण नरेश तोरमाणके गुरू देवगत जैनाचार्य थे। (शाह, जनीउम इन नॉर्थ इडिया, पृ० २१०२१३) अकबर के लिये भीसूट पादरियों का कहना था कि वह व्रती (जैनी) हो गया है। (सरीश्वर और सम्राट् पृ.३९९.४००) सवत् १९७०में दिछीके अब्दुर्रहमान फूलबालेने स्थानकवासी जैन धर्मकी दीक्षा ली यौ। जिनयरूशजी दिगम्वर धावक हुये थे। भेलसामें श्री अब्दुल रज्जाक (जिनेश्वरदास) जैनी इये हैं। जोधपुरमें स्थानकवासी जैन साधुनोने चमारों और हरिजनोंको हालमें जनी बनाया है। जैन मंदिरोंमें हारजन प्रवेशकोभी स्वीकारनेका आन्दोलन चल रहा है। -का० म०] Samuel Beal. "Si-yu ki, Buddhist Records of the Western World" 1. p. 35. & Pulle GSAI. I, pp 55. U A Grunvedel : "Alt-Kutocha " (Berlin, 1920 ) I. 10, 12. 6, G. Buhler, INDIAN ANTIQUART, VII ( 1873 ) p. 28.
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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