________________
१९०
भ० महावीर-स्मृति ग्रंथ। उसे हजम करके जीव धर्मोपार्जन नहीं कर सकता, इसके विपरीतही चल कर वह धार्मिक हो सकता ६। विवन्धुत्व या विश्वमैत्रीको अपना कर यानि अपनी इच्छाओंका सयम करके, इन्द्रियाँको विषयोंसे निवृत्त करोही, तपस्याको अपना करही वह सन्चा धार्मिक बन सकता है।
जिस सपत्ति के लिये वेद और ग्रामों में नाना धार्मिक अनुष्ठानोंकी दृष्टि हुई थी उसी संपत्तिफोही सर्व अनर्थका मूल भगवान्ने बताया और इस प्रकार वैदिक वार्मिक अनुष्ठानोंकी जडही काट दी। और धर्मके नाम पर होनेवाली हिंसाकाही निरोध कर दिया। उन्होंने कहा है
" सव्वं विलवियं गीय सब्वं पर्से विडंबणा ।
सचे मामरणा मारा सव्वे कामा दुहा वहा ॥" अर्यात बाध गरागको निःसारताको बहाते हुए उन्होंने कहा है कि जिसे हम गीत समझते से पद विलाप है । नाट्य तो विडम्बना मान है | सभी आमरण भाररूप है और इन्द्रियोंको तृप्त करनेवाले ये विय सावह है।
मनुष्यको एस ससारमें भौतिक सापति ब्यों ज्यों मिलती जायगी न्यो त्यों वह तृप्त होने के पसाय अधिक मानाने लालची होता हे इस अनुभवजन्य तत्वको भगवान्ने इन शब्दोम व्यक हिमा -
"सुवण्णरुप्परम उ पन्चया भवे, मिया हु फेलाससमा असंपया। नरस्म सुद्धस्स नदि किंचि,
पन्छा हु आगामसमा अणतिया ॥' पसिन पि जो इमलोग पटिपुग्ण दलेज पारस ।
देणापिस न संतूमे डा दुप्पूरा इमे आया। हालाही चदा लोहो लाहा लोहो पपइदई । EMATI IIT मान मना मार मार भी हमारे प्रधान हो जाय उप
गोलमा मा न्यमान है कि मो मो लाम होता गाया
REPा का उन्होंने साया है कि-"मो पोसो निणे" आप infor are आदि।
पnिा नाश करें जॉt rring: TEHRI नदी मार्ग मोको पाया।
FREETTrt नदी पर विजय पानेको
Moti
HTTE
स्म परमो जी