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________________ १० नड़ अवशेष रह गई थी । प्रभु महावीरके कालले करीव ५०० वर्षपर करीब २ ऐसी ही वस्तुस्थिति थी । प्रभुकी विद्यमानता में खेद युक्त यज्ञ यज्ञादि पूरे जोश से चलते थे तो भी सौभाग्यका विषय यह था कि उस समय में कितनेक समझदार ऋषि इन क्रियाओंको तुच्छ और स्पष्ट तौरपर देख सकते थे । इसलिये frersisht freपयोगिता उन्होंने समाजको समझा दी थी और उपनिषदोंकी रचना पर उनके रहस्य तरफ उनका लक्ष खिंचा था। असंख्य छोटे बड़े देवोंको निकालकर उनका स्थान समस्त निसर्गके महाराज्यको देनेमें भाया था जो एक परम तत्वसे व्याप्त था । वरुण, अग्नि, सूर्य आदि अनेक सत्वोंको प्रसन्न रखने पड़ते थे कारण कि वे व्यवहारमें दखल न करें। इसलिये यज्ञादिसे संतोष करनेका प्रचार परब्रह्मको विशुद्ध भावना के चलते गौणताको प्राप्त हो चुका था और इससे ब्राह्मणोंकी वृतिके स्वार्थी अंशको आवात पहुँच चुका था । और इससे उल्टा उपनिषद् के रहस्यों से समाज के बुद्धिमान और प्रगतिशील विभागपर उत्तम असर हुआ था जिससे बहुत समय तक यज्ञादिक क्रियाकांडका जोर प्रवर्तित नहीं रह सका । समाजका लक्ष प्राकृतिके सत्वोंको खास करके संतुष्ट रखनेसे पर लौकिक जीवन और आत्माके स्वरूपके सम्बन्ध में बहुत आवेश पूर्व रु. आकर्षित हो चुका था तो भी यह स्थिति बहुत समय तक टिकः नहीं सकी । करीब ३०० सौ चारसौ वर्ष उसका असर न्यूनाधिक रहा परन्तु महावीर देवके आर्विभाव कालमें पूरे सत्व फिर शता जोरसे आ गये लोगोंकी रुचि तात्विक विभागपरसे कम हो गई । 'धमगुरू रिश्वत लेकर स्वर्ग और मोक्ष तकका पटा देनेकी धृष्टतर
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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