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________________ * श्री वेचू समाजका इतिहास * ५१ प्रतिष्ठा पूजा कराई दश हजार रुपया लगाया रथ चलवाया अपने तीसरे हक का रुपया राय तथा याचकोंको व कंगीरो को देदिया ( दान किया ) तिससे तिहय्या कहलाये पीछे विडये वसे और आठवे निष्कलंकका वंश नहीं चला ये सात ७ गोत्र सोनपालके वंश सोनी गोत्रमें से हुये यह प्रथम सत्ता हुआ। (२) चन्दवरिया गोत्र ( चन्दोरियाओं की) उत्पत्ति सत्ता ७ सात कुँअर भरये १ मुजवार : रूखारुआ ३ वरोलिया ४ असैया ५ सेठिया ६ सोहाने ७।। (३) तीसरा गोत्र रपरियोकी उत्पत्ति सत्ता। चोसठियारी १ जैतपुरिया २ गोहदिया ३ जखनिया ४ काँकरमत्तले ५ छेदिया ६ दीदवावरे ७ । (४) गोत्र वकेवरियाओं की उत्पत्ति सत्ता । गगर हागा १ भुसीपद २ हरोलिया ३ सिंहीपुरा ४ माहोसाहू ५ संखा ६ भत्तेले ७।। (५) गोत्र वजाजनिकी उत्पत्ति सत्ता। वित्तिा १ पिलखनिया २ टाटेवाबू ३ जीट ४ कोलिया ५ पटवारी ६ गुझोनिआ ७।
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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