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________________ ५० * श्री लॅबेचू समाजका इतिहास # और धर्मशाला बनवाकर वहाँ श्रीजिन मन्दिरजीमें विराजमान की है। इन्हीं बाबू मुन्नालाल द्वारकादासने कुण्डलपुर ( बिहार ) भगवान महावीरकी जन्मनगरीमें दिगम्बर जैन धर्मशाला और छोटा जिनमन्दिर बनवाया था। अब उसको बड़ा कर दिया है और धर्मशालाके दरवाजेपर इन्हींका शिलालेख है । (४) मोदी गोत्र नाम सदीन ( नोकरी पेसा ) व्यवसाय राजा साहवकी दुकान पर चुनीवगेरह रसदकी सेना आदिके लिये व्यवस्था करना पीछेसे मोदी कोसाणगांउ बसे । (५) चोधरी गोत्र हनुमन्त सिंह ( नोकरी पेसा ) व्यवसाय राजाको जिस वस्तुकी आवश्यकता हो सो चोधरी से कहना हाथी घोड़ा रथ सोना चांदी मोती मूंगा आदि सब देना पीछेसे भिंडमें वसे । (६) कोठीवार गोत्रन्नतम वंशधर खड़गजीत ( नोकरी पेसा) राजा साहबको असबाव कोठामें जमा देना तथा हाथी रथ सोना चाँदी आदि देना पीछे हंतिकाँत बसे । ( ७ ) तिहैय्या गोत्र नाम बंशधर रज्जूमलजी जिन
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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