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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
छन्द भुजंग प्रभात सजे वान नीसान नोवति वषाने । सजी पालकी कोतलो वे प्रमाने ॥ सजी स्वच्छ स्वर्षा सुपेदा सुसोहे । सजे साज सो वेस बाजी विमोहे ॥१२॥ सजे जोर मुस्की महा मोल बाढ़े। सजे तल्के तुर्की जुहे नाथ ठाढ़े ॥ सजे वोज अलका लीलाहरको । सजे जोर जरहा कुमेता अरवी ॥ सजे कक्छके जो कछछी सुसंगी। समं हाजुगरी सुताजी तुरंगी । सजे इंटके तासली तीन लीने । सजी जोर वहले जुरथ हर नवीने ॥ सजे शूर सामन्त सेका निसाथे । लये वान कम्मान बरछा निहाथे ।। चले तोपची साज सेना अपारी । सजे शाह केते लये भीर भारी॥