________________
॥श्री गणेशाय नमः॥ प्राचीन कविता संघईकी वारात कायमगेजसे भिंड चोधरी गोत्रके गई १७८६ सत्रहसौ छयासीके संवतमें गई यह भी क्षत्रियत्व और हरि वंशका द्योतक है
दोहा वानीको प्रनमिके अनमो गणपति राइ । वरनन करो विवाहको भाषा सुगम बनाइ ॥ १॥ सारद तुअ सुमिरन करो मन क्रम वचन हिठाइ ॥ कीजे बुद्धि सहाउ हो जै जगतारनि माइ ॥२॥
छन्द जै जै जगतारिन असुर संहारिन पाप प्रहारिन अघहरनी। हेमाचल नंदिनी सुर मुनि वंदिन आनंद कंदिन विधिवरनी॥ लउ राइ सहायक बलदल घाइक दुरित नसाइक सुखधरनी। है बहुविधि बुधिवरु श्रम भ्रमहर मंगल कर मंगल करनी॥
दोहा कायम गंज सुथानसे राजत संघ पति दानि ।। तिनकी शोभा सुजसता कहौ कछुक बखानि ॥४॥