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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३८६ ( चोक जो पूर्वोक्त या सीमन्त कम ) है इसको मारवाड़ी अठमासा कहते हैं । खंडेलवाल अग्रवाल मोरवाड़ी और देशवालियों जो लम्बेचुओंके निकट प्रदेशमें रहते हैं गोलारारे खरउआ गोल सिंगारे पद्मावती पुरवाल इनके भी चोक कहते हैं । यह गर्भसे आठवें मास में होता है । इसको ज्योतिष में सीमन्तकर्म कहते हैं सीमन्तः केशवेशे अर्थात इसमें चोकपुरके सुहागिले स्त्रियां एक बड़ीसी चोकी रख उसपे सुन्दर वस्त्र रख लाल पीला बिछाकर उसपर गर्भिणी बधू (स्त्री) को बैठती हैं। उसपर शिरगूँथी कर सुन्दर वस्त्र आभूषण पहनाकर उसके हाथसु पूजन अर्घ चढ़वाकर या आखत अक्षत डालकर श्वसुर की गोद में बहू बतासे, मेवा, गोझा आदिसे बहूकी झोली भर बहू वसुरकी दुपट्टामें देती हैं, श्रीफल देती हैं, तिलक करती हैं । बहू को मान्ययापति मालायें पहनाता । शास्त्रमें उदुम्बर फल और छहारा की माला पहनाना लिखा है। गृहस्थाचार्य यह मन्त्र पढ़ता ॐ ह्रीं पञ्चपरमेष्ठि प्रसादात् उदुम्बर फलाभरणेन बहुपुत्रा भवितुमर्हा स्वाहा । फिर जातिके बिरादरीके स्त्री पुरुष सब व्योहार के न्योछावर करते। अन्नी, पैसा श्वसुर रुपया
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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