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________________ इसी यदुवंशमेंसे लँबेचू जातिका विकास इसी यदुवंशमें श्रीमान् राजा लोमकर्ण ( लम्बकर्ण ) भये और उन्होंने लमकाञ्चन लांबा देश ( कञ्चनगिरि ) परम्परा जो आज ( सुवर्णगढ़ ) सोनगढ़ बोला जाता है, उसके आसपास लमकाञ्चन लॉवा देश बसाया । मैं अनुमान करता हूँ कि लोमकर्ण या लम्बकर्णसे लावा और कञ्चनगिरि के पाससे काश्चन और दोनोंके योगसे लमकाञ्चन देश कहलाया। लाँबा गुजरातमें ही कञ्चनगिरिके पास ही में है। इस लाँचाको जिकर राजपूतानेका उदयपुरके इतिहासमें भी श्री गौरीशंकर ओझाजीने किया है कि लाँबामें भी चोहान रहते हैं। राजपूताना द्वि-खण्डके परिशिष्ट भागकी पहिली जिल्द की भूमिकाके २१-२२ पेजमें अजमेर रणथंभौर मण्डोर ३ संचालक ४ जालोर साँभर ( शाकंभरी भूषण) और चित्तोड़, दिल्ली लाँवा, मालवा, नाडोल ( बूंदी) वृन्दावती ( हाडोती ) हाड़ावती ( हड़दा ) सीहोर सिरोही सोनगरे ( सोनगढ़ ) काँचनगिरि के चाहमान ( चोहानोंके शिलालेख ) ख्याते हमीर महाकाव्य ( हुमायूनामा ) अलाई तारीखें अलफी तारीखें फीरोजशाही
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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