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२३६ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * करन राखी थापै नृपविक्रमने हुकुम बढ़ायो है। जोही शान राखी ही वडोरन शाह करि करतूति कुले कलशा चढायो है। चम्पतिरायजको नन्द राखी शान, शानशाह सहित तखत अटेर बीच व्याह जीति आयो है ॥२॥
कवित्त रावतगोत्रको।
( सवैया ३१ सा) आँग गाऊरावत गइंदनिके शिर रथ नहै बावन प्रतिष्ठा कीनी, अवैली नाम नीको है। ताही कुल हरिके सुराजनिने इड़े कीनी दीने बड़ेदान होत मम मुख फीको है। ताही कुल छीतल बड़े बड़े जज्ञ कीने तिनहीके गुलाल प्रेमराज दिलेल महाजीको है। मनोहरदास साहिब सपूत शिरदार अब सोई रजरोतईको* तेरे शिर टीको है।
छप्पे छन्द मंडलगढ़में बात लाड़को कौन महट्टइ, अंगह वंग तिलंग मंकि । मालों ( मालव ) सोहहइ आदि मोहर वद कसान ।' पुराने इतिहासकी श्रुति लेकर संवत् १७८८ भाटोंकी कुल
परम्परामें लऊरायने बनाया। * राज्यपनेको।