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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास # २२४ शिष्य, अतः परस्पर गुरु भाई थे ये जो एक दूसरे के प्रशस्ति में ग्रन्थ- दाता हेम पश्चात् पट्टाधीश हुए होंगे। राज के कुटुम्ब के अनेक स्त्री-पुरुषों का नामोल्लेख है । २ ग्रन्थ रचना का विवरण ग्रंथ की उत्थानिका में कवि ने ग्रंथरचना का विवरण इस प्रकार दिया है : जमुना नदी के उत्तर तट पर 'रायवद्दिय' नाम की महानगरी थी। वहां आहवमल्लदेव' नाम के राजा राज्य करते थे। वे चौहान वंश के भूषण थे । उन्होंने 'हम्मीर । वीर' के मन की शल्य को नष्ट किया था । उनकी महासती और महारूपवती पट्टरानी का नाम 'ईसरदे' था । । उसी नगर में 'कविकुल- मण्डन' सुप्रसिद्ध कवि 'लकखण' भी रहते थे । एक दिन रात्रि को वे प्रसन्नचित्त होकर शय्या पर लेटे थे, कि उनके हृदय में विचार उठा कि मुझ में उत्तम कविश्व-शक्ति है, विद्याविलास है, पर सब व्यर्थ जा रहा है, न उसे कोई जानता न सुनता । अशुभ कर्मों में मेरी परिणति लगी रहती है जिसके फलस्वरूप आगे मुझे दुःख भोगना पड़ेगा । इधर मेरी कवित्व
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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