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________________ २२२ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास जाने का समय है । ११० वां पत्र पीछे से जोड़ा हुआ है और वह दूसरे हाथ का लिखा हुआ है । उसमें कहा गया है कि यह शास्त्र मेडता शुभस्थान पर, परमालदेव राठौर के राज्य में, खंडेलवालान्वय के पाटणीगोत्र के एक सजन हेमराज ने संवत् १५६५ वैशाख शु० २, सोमवार को लिखाकर, मूलसंघ, सरस्वती गच्छ, बलात्कार गण, कुन्दकुन्दान्वय के मुनि पुण्यकीर्ति को पठनार्थ प्रदान किया । * संवत् १५६५ वर्ष बसाव सु० द्विइज सोमवासरे श्रीमूलसंघे सरस्वती गछे बलात्कारगणे श्रीकुन्दकुन्दाचार्यान्विये भट्टारक श्री पद्म नन्दिदेवा । तत्पठे भटारक श्री शुभचन्द्रदेवा । तत्पटे भटारक श्री जिणचन्द्रदेवा | मुनि मण्डलाचार्य श्रीरत्नकीर्तिदेवा | तत्शिष्य मुनि मण्डलाचाय श्री हेमचंद्रदेवा । द्वितीय शिष्य मुनि मंडलाचाय श्री भुवनकीर्तिदेवा । तत्सिक्ष मुनि पुण्यकीति । मेडता शुभस्थानात् । राजश्री मालदे राउड राज्ये । पंडेलवालान्वये, पाटणी गोत्रं । संघ भारधुरिधरान् साह दोदा । तस्य भाय्यां शीलतरंगिणी व्यवसिर । तत्पुत्र प्रथमपुत्र साह तीकउ प्रथम भाय्य तिहुण श्री तत्पुत्र पंच । प्रथम पुत्र सीहा भाय्र्या श्रीयादे | तत्पुत्र मोना भाय महणश्री । द्वितीय पुत्र लाला | त्रितीय पुत्र थिरपाल । चतुर्थ पुत्र धर्मदास । सा० सीहा द्वितीय स्त्री सिंगारदे । दुतीय पुत्र शाह दसू । भार्या
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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