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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * तुहुं धण्णु जासु एरिसिउ चित्तु तिपयत्थरसुज्जलु मइ - पवित्तु । सयणासण स्तंबरम तुरंग __धय छत्त चमर बाला वरंग । धण कण कंचण घण-दविण-कोस __जंपाण -जाण भूमण संतोस । घर पुर जयरायर देस गाम पट्टोलंबर - पट्टण - समाण । संसार - सारु णयवत्थु भावु जं जं दीसइ णण महाउ । तं तं मुहेण पावियइ सव्वु लहियइ ण कव्व माणिक्कु भब्बु । शरीरवाली वाला स्त्री, धन, कण, कांचन, धना द्रविण-कोश, पालकी, यान, यथेच्छ भूषण, घर, पुर, नगर देश, ग्राम, नगर सब सामान बड़े बड़े तम्बू आदि संसार में सार-रूप नाना प्रकार की जो जो वस्तुएँ दीखती हैं, वे सब सुलभता से प्राप्त हो सकती हैं, पर काब्य रूपी भव्य-माणिक्य सुलभ नहीं है । यहाँ बहुत से प्रज्ञावान् बुधजन दिखाई देते हैं, पर जैनशास्त्र का तज्ञ (ज्ञाता) सुकवि
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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