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________________ १५६ मे समान इबिहास - अथ कर्ण भूमि भर्तुः। शाखा द्वितयं विभातिभूलोके। एका राउल (रावल) नानी राणानाम्नी परा महती ॥५०॥ अपरस्यां शाखायां माहपराहय प्रमुखा महीपाला । यदवंशे नरपतयो गजपतयः छत्रपतयोपि ॥७०॥ श्री कर्णे नृपतित्वं मुक्त्वा देवे इलायभं प्राप्ने । राणत्व प्राप्तः सन् पृथ्वीपति राहपोभूपः ॥७॥ और राजााकर्ण सिंह के दो दो पुत्र एक माहप एक राहप । माहप से रावल शाखा और राहप से राणा शाखा हुई । रावल शाखा में जैत्रासिंह आदि और राणा शाखा में सामन्त सिंह आदि । कर्णसिंह ने आधाटपुर का किला बनवाया। इन्हीं के वंश में सामन्त सिंह ने सोलंकियों से उदयपुर का राज्य छीना। फिर सोमन्त सिंह उपर्युक्त जैनमन्दिर के शिलालेख से चैरि सिंह आदिक कर्ण सिंह आदिक सब सजा जैन थे, ऐसा साबित होता है। राणा कुंभा को भी इस राजपूताने इनिहास में जैन प्रतिपादित है उनकी स्त्री ने श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर और मूर्ति बनवाई । राणा वस्तुपाल के मंत्री तेजपाल बताये पटमत पोशक लिखा सो ओझा जी ने लिखा है एक
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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