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सुकुमाल गुन - मनिमाल उन्नत, भालकी जयमाल है ॥१॥
धत्तानंद जय विशला-नंदन, हरिकृत-वंदन, जगदानदन,
चंदवरं । भव-ताप-निकंदन तन कन-मंदन, रहित - सपंदन नयन - धरं ॥२॥
छन्द तोटक जय केवल - भानु कला - सदनं,
भवि - कोक - विकाशन - कंज-वनं । जग - जीत - महारिपु - मोह - हरं,
रज ज्ञान - दृगांवर चूर - करं ।। गर्भादिक - मंगल - मडित हो,
दुख - दारिद को नित खंडित हो । जगमाहिं तुम्हीं सत - पंडित हो,
तुम ही भव - भाव - विहंडित हो । हरिवंश - सरोजनको रवि हो,
बलवंत महंत तुम्ही कवि हो । लहि केवल धर्म - प्रकाश कियो,
अबलों सोई मारग राजति यो । पुनि आपतने गुनमाहिं सही,