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सुर मग्न रहैं जितने सब ही। तिनको वनिता गुन गावत हैं,
लय माननि सों मन - भावत हैं। पुनि नाचत रंग उमंग भरी,
तुम भक्तिविर्षे पग येम धरी । झननं झननं झन झननं,
सुर लेत तहाँ तननं तननं ॥ घननं घननं घन घंट बजे,
दम दम मिरदंग सजै । गगनांगन - गर्भगता सुगता,
ततता ततता अतता वितता ।। धृगतां धृगतां गति बाजत है,
सुरताल रसाल जु छाजत है। सननं सननं सननं नभ में,
इक रूप अनेक जु धारि भमें । कइ नारि सुवीन बजावति हैं,
तुमरो जस उज्जल गावति हैं । कर - तालविर्ष करताल धरें,
सुर ताल विशाल जु नाद करें। इन आदि अनेक उछाह भरी,
सुर भक्ति करें प्रभुजी तुमरी ।