________________
१२४
शुकल दशै वैशाख दिवस अरि,
घाति - चतुक छय करना । केबल लहि भवि भव-सर तारे,
जजों चरन सुख भरना ॥ मोहि. ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लदशम्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ निवपा०। कार्तिक श्याम अमावस शिव-तिय,
पावा पुरतें परना । गन-फनि वृद जजे तित बहुविधि,
___ मैं पूजों भय - हरना ॥ मोहि० ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपा० ।
जयमाला
छन्द हरिगीता गनधर असनिधर, चक्रधर,
हलधर गदाधर वरवदा । अरु चापधर विद्यासुधर,
तिरसूलधर सेवहिं सदा ॥ दुख - हरन आनंद - भरन तारन,
तरन चरन रसाल है ।