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भगौ तब रंक सु देखत हाल,
लहो तब केवल ज्ञान विशाल ॥ दियो उपदेश महाहितकार,
सु भव्यन बोधि सम्मेद पधार । सुवर्णहिभद्र जू कूट प्रसिद्ध,
वरी शिवनारि लही वसु ऋद्ध । जजूं तुम चर्ण दोऊ कर जोर,
प्रभू लखिये अब ही मम ओर । कहै 'बखतावर रत्न' बनाय,
जिनेश हमें भव-पार लगाय ॥
धत्ता
जय पारस-देवं, सुर-कृत सेवं, वंदित चरण सुनागपती। करुणाके धारी, पर-उपकारी,शिव-सुखकारी कर्महती। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाण पंचकल्याणकप्राप्ताय महाध्य निर्वपामीति स्वाहा।
जो पूजे मन लाय, भव्य पारस प्रभु नित ही। ताके दुख सब जॉय, भीति व्याप नहिं कित ही ॥ सुख-सम्पति अधिकाय, पुत्र-मित्रादिक सारे । अनुक्रमसों शिव लहे, 'रतन' इम कहें पुकारे ।
(इति आशीर्वादः । पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि)