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श्रीवर्द्धमान जिन-पूजा [कविवर वृन्दावनजी]
मत्तगयंद श्रीमत वीर हरें भव-पीर, भरें सुख-सीर अनाकुलताई। केहरि-अंक अरीकरदंक, नये हरि-पंकति-मौलि सुआई। मैं तुमको इत थापतु हौं प्रभु,
भक्ति - समेत हिये हरषाई । हे करुणा - धन - धारक देव,
इहाँ अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई ॥ ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्रीवर्द्ध मानजिनेन्द्र ! अत्र मम मन्निहिनो भव भव वषट् ।
क्षीरोदधिसम शुचि नीर, कंचन-भृङ्ग भएँ । प्रभु वेग हरो भव-पीर, यात धार करों। श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो ।
जय वर्द्धमान गुण-धीर, सन्मति-दायक हो ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं
निर्व०
मलयागिर - चंदन सार, केशर - संग घसों। प्रभु भव-आताप-निवार, पूजत हिय हुलसों॥श्रीवीर० ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चंदनं निव०