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लखि कारण ह जगत उदास,
चित्यो अनुप्रेक्षा सुख-निवास ।। तितलोकांतिक बोध्यो नियोग,
हरिशिविकासजिधरियो अभोग । तापै तुम चढ़ि जिनचंदराय,
ता छिनको शोभा को कहाय ॥ जिन अंग सेत सित चमर ढार,
सितछत्र शीस गल-गुलकहार । सित रतन-जड़ित भूषण विचित्र,
सित चंद्र-चरण चर, पवित्र ॥ सित तन-द्युति नाकाधीश आप,
सित शिविकाकांधेधरि सुचाप । सित सुजस सुरेश नरेश सर्व,
सित चितमें चितत जात पर्व ।। सित चंद-नगरतें निकसि नाथ,
सित वनमें पहुँचे सकल साथ । सित शिला-शिरोमणिस्वच्छ छाँह,
सित तप तित धारी तुम जिनाह ।। सित पयको पारण परम सार,
सित चंद्रदत्त दीनों उदार । सित करमें सो पय-धार देत,