________________
जो ऋपभेश्वरमा भुक्ती
जो ऋपभेश्वर पूज, मन-वच तन भाव शुद्ध कर प्रानी। सो पावै निश्चसौं, भुक्ती औ मुक्ति सार सुख-थानी ।।
(इत्याशीर्वादः । पुष्पाञ्जलि सिपामि)
लिक्षिपा
श्रीचन्द्रप्रमजिन-पूजा [कविवर वृन्दावनजी]
छप्पय चारु चरन आचरन,
चरन चित-हरन चिहनचर । चंद चंद-तन चरित,
चंद-थल चहत चतुर नर ।। चतुक चंड चकचूरि,
चारि चिचक्र गुनाकर । चंचल चलित सुरेश,
चूल-नुत चक्र धनुरहर । चर-अचर-हितू तारन-तरन,
सुनत चहकि चिरनंद शुचि । जिन-चंद-चरन चरच्यो चहत, चित-चकोर नचि रच्चि रुचि ॥
दोहा धनुष डेढसो तुंग तन, महासेन-नृप-नंद ।