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मातु लक्ष्मना-उर जये, थापों चंद-जिनंद ।। ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अन अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अन तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अन मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
अष्टक गंगा-हृद-निरमल-नीर, हाटक-भृङ्ग भरा। तुम चरन जजों वरवीर, मेटो जनम-जरा ॥ श्रीचंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगे ।
मन वच तन जजत अमंद आतम-जोति जगे ।।१।। ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्व. श्रीखंड कपूर सुचंग, केशर-रंग भरी । घसि प्रासुक-जलके संग, भव आताप हरी ॥श्रीचंदनाथ० ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चन्दनं निर्व० तंदुल सित सोम-समान, सम लय अनियारे। दिय पुंज मनोहर आन, तुम पदतर प्यारे ॥श्रीचंदनाथ० ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्व० सुर-द्रुमके सुमन सुरग, गंधित अलि आवै। तासों पद पूजत चंग, काम-विथा जावं ॥श्रीचंदनाथ० ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्व. नेवज नाना-परकार, इंद्रिय-बलकारी ।