________________
अमद
नियोग समस्त किये तित सार,
सुलाय प्रभु पुनि राज-अगार ॥ पिता कर सोंपि कियो तित नाट,
अमंद अनंद समेत विराट । सुथान पयान कियो फिर इंद्र,
इहां सुर-सेव करें जिन-चंद ॥ कियो चिरकाल सुखास्रित राज,
प्रजा सब आनंद को तित साज । सलिप्त सभोगनि में लखि जोग,
कियो हरि ने यह उत्तम योग ।। निलजन नाच रच्यो तुम पास,
नवों रस-पूरित भाव विलास । बजे मिरदंग दम दम जोर,
चले पग झारि झनझन झोर ।। घनाघन घंट करै धुनि मिष्ट,
बजै मुहचंग सुरान्वित पुष्ट । खड़ी छिन पास छिनहि आकाश,
लघु छिन दीरघ आदि विलास । ततच्छन ताहि विल अविलोय,
भये भवतें भय-भीत बहोय । सुभावत भावन बारह भाय,